बुधवार, 15 मार्च 2017

= निष्कामी पतिव्रता का अंग =(८/७६-८)


#daduji
卐 सत्यराम सा 卐 
*श्री दादू अनुभव वाणी* टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
*= निष्कामी पतिव्रता का अँग ८ =* 
दादू टीका राम को, दूसर दीजे नाँहिं । 
ज्ञान ध्यान तप भेष पख, सब आये उस माँहिं ॥७६॥ 
साधक - सुन्दरी को चाहिए - वह निरंजन राम के ही तिलक लगावे, वृत्ति राम के स्वरूप में ही लीन करे, अन्य में नहीं । उक्त निष्काम पतिव्रत पूर्वक राम में वृत्ति लगाने रूप साधन में ज्ञान, ध्यान, तप, भेष, पक्ष आदि सभी साधन आ जाते हैं । अन्य साधन करने की आवश्यकता नहीं रहती ।
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साधू राखै राम को, सँसारी माया । 
सँसारी पल्लव गहैं, मूल साधू पाया ॥७७॥ 
सँतजन तो अपने हृदय में नाम चिन्तन द्वारा राम को ही रखते हैं - और सँसारी जन अपने हृदय में माया को रखते हैं । इसलिए सँतों ने तो निरंजन राम रूप मूल को प्राप्त किया है और सँसारी जनों ने भोग रूप कोंपलें प्राप्त की हैं । 
*अन्य लग्न व्यभिचार* 
दादू जे कुछ कीजिये, अविगत बिन आराध । 
कहबा सुनबा देखबा, करबा सब अपराध ॥७८॥ 
७८ - ७९ में कहते हैं - निरंजन राम की उपासना छोड़ अन्य जो भी करना है सो व्यभिचार है । मन इन्द्रियों के अविषय परब्रह्म की उपासना बिना जो कुछ कहना, सुनना, देखना और कार्य करना, वह सब जन्मादि रूप अनर्थ का हेतु होने से अपराध है । 
(क्रमशः)

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