卐 सत्यराम सा 卐
दादू भीतर पैसि कर, घट के जड़े कपाट ।
सांई की सेवा करै, दादू अविगत घाट ॥
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साभार ~ Sadanand Soham
दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोय॥कबीर॥
GHOONGHAT..K...PAT..KHOL....RE...
TUJHE..PIYA....MILENGE
(S00000000000000000HAM)
हम अपने जीवन का अधिकतम भाग या तो भविष्य की कल्पनाओं में जीते है या अतीत के मृत विचारों में। यही “अतीत” और “भविष्य” हैं वो दो पाट जिनमें पिस-पिस कर हम जीवन जीते नहीं बल्कि काटते हैं। जीता वही है जो वर्तमान में ठहर जाता है। ठहरना से तात्पर्य है निर्विचार होना और निर्विचार होने की कला है ध्यान अर्थात स्वयं की ओर मुड़ जाना।
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कबीरदास जी का बेटा था कमाल और वास्तव में कमाल ही था वह, कमाल कहता है कि चक्की के दो पाटों के बीच में एक कील भी होती है, जो हमेशा ठहरी रहती है, सदैव थिर है और जो दाने चलते चलते उस कील के संपर्क में आ जाते हैं या उस कील का सहारा ले लेते हैं वो पिसने से बच जाते हैं।
.ऐसी ही एक थिर कील हमारे भीतर भी है जिसे “आत्मा” नाम दिया गया है, यही वास्तविक “मैं” है। उन अनाज के दानों की तरह जो इस “मैं” रूपी कील की तरफ अर्थात स्वयं की ओर मुड़ जाता है, वो अतीत और भविष्य के पाटों में पिसने से बच जाता है अर्थात शाश्वत रूप में सदा ही बना रहता है। उस थिर कील को जो पकड़ लेता है वो न तो भविष्य में होता है और न ही अतीत में। और जब ये दोनों ही नहीं होते तब बचता है शून्य और शून्य होना(अंदर से) ही वर्तमान में होना है और वर्तमान है निर्विचार होना अर्थात ध्यानावस्था। इसी अवस्था में तो उस शाश्वत कील का पता चलता है, यही वो क्षण है जब परमात्मा बरसता है, हम ज्योतिर्मय होते हैं, झलकें मिलती हैं उस परम की।
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उस कील का सहारा जिसने ले लिया फिर वो संसार में रहता तो है किन्तु संसार उसके अंदर नहीं रहता, कमलवत हो जाता है वो, चाहे वो गृहस्थ हो या कुछ और लेकिन अंदर से वो सन्यासी होता है जैसे संत कबीर या कहो कमाल। वो कील भीतर ही है और इसलिए सन्यास भी अंदर की ही घटना है, हाँ इतना जरूर है कि यदि किसी के भीतर सन्यास का दीया जला हुआ हो तो फिर चाहे द्वार दरवाजे कोई बंद क्यों न करले लेकिन रंध्रों से रोशनी आएगी अवश्य।
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सभी प्रबुद्ध ईश्वर प्रेमी पाठकों से अनुरोध है कि किसी भी समय अपने भीतर चलने वाले विचारों को देखें तो यही पाएंगे कि या तो वो भविष्य से संबन्धित होंगे या अतीत से क्योंकि वर्तमान का तो विचार होता ही नहींI
(S0000000000000HAM)
धन्यवाद।
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