#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*श्री दादू अनुभव वाणी* टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*= चेतावनी का अँग ९ =*
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आपा पर सब दूर कर, राम नाम रस लाग ।
दादू अवसर जात है, जाग सके तो जाग ॥ १० ॥
देहादि अहँकार - "मैं मेरा, तू तेरा" आदि सब भेद भावनाएँ दूर करके राम - नाम चिन्तन - रस के पान करने में संलग्न हो । इस कार्य के लिए यह मनुष्य शरीर ही उत्तम अवसर है और तुझे प्राप्त भी है, किन्तु तेरे ही प्रमाद से यह तेरे हाथ से जा रहा है । अत: तू मोह निद्रा से जाग सके तो शीघ्र ही जागकर कल्याण का साधन कर, नहीं तो फिर पश्चात्ताप ही करना होगा ।
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बार बार यहु तन नहीं, नर नारायण देह ।
दादू बहुरि न पाइये, जन्म अमोलक येह ॥ ११ ॥
नारायण की प्राप्ति का साधन यह नरदेह बारँबार नहीं मिलता । अन्य देव, पशु, पक्षी, कीटादि शरीरों में भी भ्रमण होता ही रहता है । नर शरीर के छोड़ते ही पुन: नर शरीर ही मिले, यह नियम नहीं है, न जाने पुन: कब मिले । अत: इस अमूल्य शरीर को भगवद् - भक्ति द्वारा सफल बनाना चाहिए ।
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एका - एकी राम सौं, कै साधू का संग ।
दादू अनत न जाइये, और काल का अँग ॥ १२ ॥
नर जन्म को सफल बनाने के लिए निष्काम होकर अकेला ही निरंजन राम से वृत्ति लगावे रक्खे और यदि संग करना ही हो तो राम के स्वरूप को समझने वाले निष्कामी सँतों का ही करे । अन्य सकाम साधना व सकामी मानवों के संग में नहीं जाना चाहिए । कारण, वे तो काल के ही अँग हैं - जन्मादि सँसार को बढ़ाने वाले ही हैं ।
(क्रमशः)
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