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॥ दादूराम सत्यराम ॥
*श्री दादू चरितामृत(भाग-२)*
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*= विन्दु ९४ =*
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*= टीलाजी का प्रश्न =*
टीलाजी दादूजी महाराज की सेवा में रहते थे, इससे भजन - शाला के द्वार पर बाहर रहा करते थे । उस दिन रात्रि के समय टीलाजी संतों की विचार गोष्ठी सुनते रहे थे किन्तु द्वार से आते जाते किसी को भी नहीं देखा था । इससे सूर्योदय होने पर जब भजन शाल का द्वार दादूजी महाराज ने खोला तब टीलाजी ने दादूजी महाराज को सत्यराम बोलते हुये साष्टांग दंडवत करके पूछा - स्वामिन् ! रात्रि को कई सज्जनों की आवाजें आ रही थीं और उच्चकोटि की अध्यात्म विषयक विचार - गोष्ठी हो रही थी । वे कौन थे ? द्वार से आते जाते मैंने किसी को भी नहीं देखा था किन्तु विचारगोष्ठी रात्रि भर चलती रही और साथ में एक दिव्य प्रकाश भी भीतर प्रतीत हो होता रहा था फिर प्रातःकाल विचार गोष्ठी की ध्वनि और प्रकाश भी सहसा ही लोप हो गये । वे कौन थे कृपा करके बताइये ।
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अपने प्रिय शिष्य टीला का प्रश्न सुनकर शिष्य वत्सल दादूजी महाराज ने कहा - वे पूर्वकाल के ब्रह्मस्वरूप प्रसिद्ध संत - दत्त, गोरक्ष, प्रहलाद आदि पधारे थे और उनके ब्रह्म तेज का ही उस समय भासने वाला प्रकाश था । वे संत आये तब सहसा अंधकार नष्ट हो गया था फिर परस्पर मिलने के पश्चात् मंगलमय ब्रह्म संबन्धी विचार गोष्ठी होती रही थी और उससे सबको ही परमानन्द प्राप्त हुआ था । फिर वे सब संत आकाश मार्ग से पधार गये थे ।
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दादूजी महाराज के उक्त वचन सुनकर टीलाजी को अति आश्चर्य हुआ था और परमानन्द भी प्राप्त हुआ था । टीलाजी ने अपने शरीर से गुरुदेव दादूजी महाराज की बहुत सेवा की थी । टीलाजी का गुरुदेव दादूजी महाराज में अति स्नेह था और परमात्मा में भी अति प्रेम था, इस से दादूजी महाराज ने भूतकाल के सिद्ध संतों के रहस्यमय मिलन तथा ज्ञान गोष्ठी का परिचय टीलाजी को दिया था । सर्व साधारण को तो उक्त संतों के मिलन का तथा ज्ञान गोष्ठी का परिचय देना योग्य भी नहीं था किन्तु टीलाजी उसके योग्य थे । उच्चकोटि के संत योग्य व्यक्ति को ही रहस्यमय विचार कहते हैं, यह तो प्रसिद्ध ही है ।
इति श्री दादूचरितामृत विन्दु ९४ समाप्तः ।
(क्रमशः)
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