शनिवार, 18 मार्च 2017

= वेदविचार(ग्रन्थ ६/३-४) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
https://www.facebook.com/DADUVANI
.
*(ग्रन्थ ६) वेदविचार*
.
*वेद बहुत विस्तार है, नाना बिधि के शब्द ।*
*पढ़तें पार न पाइये, जो बीते बहु अब्द ॥३॥*
यों तो वेद का इतना विस्तार है, उसमें इतने शब्द(मन्त्र) हैं कि कोई आदमी, कितने ही वर्ष पढ़ते-पढ़ते बीत जाय, पार नहीं पा सकता ॥३॥
.
*= वेद वृक्षवर्णन =* 
*वेद वृक्ष करि बरनियौ, पत्र पुष्प फल जाहि ।*
*त्रिबिधि भांति शोभित सघन, ऐसो तरु यह आहि ॥४॥*
(अब कवि वेद का रूपलान्कार से वर्णन कर रहे हैं -) वेद को एक तरह से वृक्ष के तुल्य समझना चाहिये जो(कर्म, उपासना तथा ज्ञान काण्ड के भेद से) तीन तरह के पत्र-पुष्प-फलरूपी मन्त्रवचनों से आच्छादित(= सघन) है ॥४॥
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें