शनिवार, 11 मार्च 2017

= निष्कामी पतिव्रता का अंग =(८/६४-६)


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卐 सत्यराम सा 卐 
*श्री दादू अनुभव वाणी* टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
*= निष्कामी पतिव्रता का अँग ८ =* 
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*भ्रम विध्वँसन*
भरम तिमिर भाजे नहीं, रे जिय आन उपाइ ।
दादू दीपक साज ले, सहजैं ही मिट जाइ ॥६४॥
६४ - ६६ में भ्रमनाश का उपाय बता रहे हैं - रे जीव ! असत्य मायिक प्रपँच में सत्य बुद्धि रूप भ्रम और जीव ब्रह्म का भेद रूप अज्ञान, ज्ञान के बिना अन्य तीर्थ व्रतादि उपायों से दूर नहीं होते । अत: उनको दूर करने के लिए निष्काम पतिव्रतादि अन्तरँग साधनों के अभ्यास द्वारा अपने हृदय - घर में ब्रह्म ज्ञान - दीप जगाकर वासना - वायु के निरोध द्वारा स्थिर कर ले । ऐसा करने से असत्य में सत्य, भ्रम और जीव - ब्रह्म का भेद रूप अज्ञान अनायास ही तेरे हृदय से हट जायगा ।
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दादू सो वेदन नहिं बावरे, आन किये जे जाइ । 
सब दुख भँजन साँइयाँ, ताही सौं ल्यौ लाइ ॥६५॥ 
हे अज्ञात तत्व साधक ! वह जन्म मरणादिक सँसार - पीड़ा ऐसी नहीं है, जो ब्रह्म ज्ञान के बिना किसी अन्य उपाय के करने से दूर हो जाय । सँपूर्ण दुखों के नाशक भगवान् हैं, उन्हीं भगवान् में वृत्ति लगा कर ब्रह्म ज्ञान को प्राप्त कर, तभी तेरा सँसार - दु:ख नष्ट होगा । 
दादू औषधि मूली कुछ नहीं, ये सब झूठी बात । 
जे औषधि ही जीविये, तो काहे को मर जात ॥६६॥ 
हे लोगो ! तुम जिन रसायनादि औषधियों से दीर्घजीवी और अमर होना चाहते हो, वे जड़ी - बूटी आदि औषधियाँ अमरता में लेश मात्र भी कारण नहीं हैं । और जो लोग कहते हैं - "औषधि आदि उपायों से अमरता प्राप्त होती है, उनकी ये सभी बातें मिथ्या हैं । कारण, औषधि आदि से जीवित रहना संभव होता तो सँसार के श्रीमान् क्यों मर जाते हैं ? उनको तो औषधि आदि उपाय प्राप्त होते ही हैं । अत: अमरता ब्रह्म - ज्ञान से ही प्राप्त होती है, अन्यथा नहीं ।
(क्रमशः)

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