सोमवार, 20 मार्च 2017

= १३९ =

卐 सत्यराम सा 卐
दादू भँवर कँवल रस बेधिया, अनत न भरमैं जाइ ।
तहाँ बास बिलंबिया, मगन भया रस खाइ ॥
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साभार ~ Sadanand Soham
प्रिय मित्रो ध्यान रहे की जब तक विराट की प्यास न होगी, तब तक तृप्ति नहीं होगी, क्यों की थोड़ी भूख और थोड़ा समय के लिए ही तृप्त होगी। 
(S0000000000HAM)
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जब पेट में भूख लगती है, तो यह कोई अल्टीमेट, कोई परम भूख तो नहीं है। जब प्यास लगती है, तो यह प्यास कोई चरम प्यास तो नहीं है। जितनी प्यास की सीमा है, दो बूंद पानी डाल देते हैं, वह तृप्त हो जाती है। लेकिन दो बूंद की जितनी सीमा है, उतनी देर में वह वाष्पीभूत होकर उड़ जाता है, प्यास फिर लग आती है। थोड़ी भूख हो, तो क्षुद्र ही परिणाम होगा। परम भूख का हमें पता ही नहीं है। परम भूख एक ही है, अस्तित्व को जानने की, अस्तित्व के साथ एक होने की, अस्तित्व के उदघाटन की। उसे सत्य कहें, उसे परमात्मा कहें, जो नाम देना चाहें दें। लेकिन वह परम भूख आत्मवान कहते है, इंद्रियों से हटाएं अपनी चेतना को, डुबाएं चेतना को नाभि के निकट, मस्तिष्क से नीचे उतारें। और जिस दिन नाभि के पास आप पहुंच जाएंगे, उसी दिन उदघाटन होगा,एक नई प्यास का। 
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उसी प्यास का नाम प्रार्थना है, उसी प्यास का नाम ध्यान है। और उसी प्यास से जो खोज है, वह खोज धर्म है। और उस प्यास से चल कर जब आदमी उस सरोवर पर पहुंचता है जहां वह प्यास तृप्त होती है, तो उस सरोवर का नाम परमात्मा है।
जय सनातन

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