卐 सत्यराम सा 卐
जीवित भागे भ्रम सब, छूटे कर्म अनेक ।
जीवित मुक्त सद्गति भये, दादू दर्शन एक ॥
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साभार ~ Gems Of Osho
जागो !
बंबई में एक नई नई होटल खुली थी, जिसके बाहर ही एक बड़ा साइनबोर्ड लगा था कि चिंता न करें, इस होटल में आपका बिल आपके नाती चुकाएंगे। मुल्ला नसरुद्दीन एक दिन अपने मित्रों के साथ उस होटल के सामने से गुजर रहा था, उसकी नजर साइनबोर्ड पर गई, उसने कहा, अरे, यह होटल कब खुल गई ? क्या पते की बात लिखी है : आपका बिल आपके नाती चुकाएंगे ! चलो, हो जाए कुछ ! इस तख्ती को देखकर तो भूख भी जग गई है।
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सभी पहुंच गए होटल के भीतर और भरपेट भोजन किया और जो कुछ भी वे खा पी सकते थे उन्होंने खाया पिया, जब हाथ मुंह धोकर चलने लगे तो बैरे ने एक सौ बीस रुपए का बिल लाकर सामने रख दिया। बिल देख कर मुल्ला तो बहुत नाराज हुआ। उसने कहा, यह क्या अंधेर है ! बाहर इतना बड़ा बोर्ड लगा रखा है कि आपका बिल आपके नाती चुकाएंगे, फिर यह बिल देते हुए शर्म नहीं आती ? बैरा बोला, हुजूर, यह आपका नहीं, आपके दादाजी का बिल है।
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तुम कितने दिन से यहां हो ! कितनी बार तुम जिए हो! कितने बार तुम मरे हो! जन्म और मरण की इस अनंत शृंखला में अब तक कुछ उपलब्धि नहीं हुई? और पंडित पुरोहित कह रहे हैं कि और थोड़े जनम ! अब क्या जोड़ लोगे और जो तुमने अब तक नहीं किया है ? नहीं, यह भाषा गलत है। भविष्य की भाषा गलत है। धर्म की भाषा है : वर्तमान।
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मैं तुमसे कहता हूं, अभी और यहीं, इसी क्षण परमात्मा उपलब्ध हो सकता है, क्योंकि परमात्मा उपलब्ध ही है। तुमने उसे कभी खोया ही नहीं था। सिर्फ तुम पीठ करके खड़े हो गए हो। जैसे कोई सूरज की तरफ पीठ करके खड़ा हो जाए। तो कोई सूरज खो थोड़े ही जाता है ! जरासा घूमना है और सूरज सामने हैं। या यह भी हो सकता है कि सूरज सामने हो और तुम आंख बंद किए खड़े हो। जरा सी आंख खोलनी है और सूरज सामने है। ऐसा ही परमात्मा है। ऐसा ही जीवन का परम अर्थ है। ऐसा ही निर्वाण है। निर्वाण तुम्हारा स्वभाव है। परमात्मा तुम्हारा अस्तित्व है।
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इसलिए जो तुमसे कहे कि बहुत जन्म लगेंगे, समझ लेना चालबाजी है। मैं तुमसे कहता हूं, जन्म की तो बात छोड़ो, दिनों की भी बात व्यर्थ है, क्षणों की भी बात व्यर्थ है। प्रश्न समय का ही नहीं है। प्रश्न तो अभी जागने का है। जब जागे तब सवेरा। क्योंकि सवेरा तो है ही, बस तुम सोए हुए हो।
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गुरुदास, जागो ! सपना यह संसार ~ ओशो
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