गुरुवार, 23 मार्च 2017

= विन्दु (२)९५ =

#daduji
॥ दादूराम सत्यराम ॥
*श्री दादू चरितामृत(भाग-२)* 
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*= विन्दु ९५ =*
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इस प्रकार गरीबदासजी को सर्वथा निष्काम जान कर अन्तर्यामी दादूजी गरीबदासजी पर प्रसन्न होकर बोले - तुम्हारा विचार बहुत अच्छा है, करामात तो साधक के लिये कलंक रूप ही होती है । उससे साधक का पतन ही होता है । तुम्हारे भजन - साधन के सहायक मेरे जो पांच हजार वचन हैं, वे अवश्य होंगे । उन मेरे पांच हजार वचनों को तुम मेरा ही स्वरूप समझकर उनका आश्रय लेकर रहो । उस पांच हजार वाणी में मेरा तेज स्थित है । यह कहकर कहा - 
“साधू जन की वासना, शब्द रहै संसार । 
दादू आतम ले मिलै अमर उपावन हार ॥” 
अर्थात् संतों की भावना उनकी वाणी रूप शब्दों में स्थिर होकर संसार में रहती है । उन शब्दों का आश्रय लेकर जीवात्मा सृष्टि कर्ता अमत ब्रह्म को प्राप्त हो जाता है । फिर कहा - जो मेरी वाणी का मन, वचन से सेवन करेगा अर्थात् मन में उसका अर्थ धारण करेगा और वाणी द्वारा उच्चारण करके अन्यों को सुना - कर समझायेगा, वह मन वाछिंत फल प्राप्त करेगा । मेरी वाणी का सेवन पूजन जो लोग सदा करेंगे तथा मनन करेंगे उनको अनायास ही भोग और मोक्ष प्राप्त होते रहेंगे । जो सांसारिक धर्मों को त्याग करके निष्पक्ष भागवद् धर्म को अपनायेंगे, काम क्रोधादिक आसुर गुणों को त्याग करेंगे और निरंतर निरंजन राम का स्मरण करेंगे, वे निरंजन राम को ही प्राप्त होंगे । यह कहकर दादूजी महाराज ने यह पद कहा - 
निर्पख रहणा राम राम कहणा, 
काम क्रोध में देह न दहणा ॥ टेक ॥ 
जेणे मारग संसार जायला, 
तेणे प्राणी आप बहायला ॥ १ ॥ 
जे जे करणी जगत करीला, 
सो करणी संत दूर धरीला ॥ २ ॥ 
जेणे पंथैं लोक राता, 
तेणे पंथैं साधु नहिं जाता ॥ ३ ॥ 
राम राम दादू ऐसे कहिये,  
राम रमत राम हि मिल रहिये ॥ ४ ॥
साधक संतों को निर्पक्ष रहते हुये राम राम उच्चारण करते रहना चाहिये । काम क्रोधदिक से शरीर को नहीं जलाना चाहिये । जिस मार्ग में सांसारिक प्राणी जाते हैं, उसमें जाकर साधक प्राणी अपने को संसार प्रवाह में ही बहाता है । अतः जो - जो अनुचित कर्म जगत के प्राणी करते हैं, उन कर्मों को संत जन दूर ही से त्याग देते हैं और जिस मार्ग में सांसारिक लोग अनुरक्त हैं, उस भोग - राग रूप पंथ में संत नहीं जाते । साधक संतों को इस प्रकार राम - राम करना चाहिये कि राम से चिन्तन रूप आनन्द लेते लेते राम में ही एक होकर रहें । उक्त उपदेश देकर दादूजी महाराज ने कहा - मेरी वाणी में सूत्र रूप से सब कुछ ही मिलेगा । अपने-अपने भावों के अनुसार ही प्राणी उसे अपनाकर लाभ उठाते रहेंगे । 
(क्रमशः)

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