#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*श्री दादू अनुभव वाणी* टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*= चेतावनी का अँग ९ =*
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दादू जे साहिब को भावे नहीं, सो जीव न कीजी रे ।
परहर विषय विकार सब, अमृत रस पीजी रे ॥ ४ ॥
हे जीव ! पर - पीड़नादि जो भी कुत्सित व्यवहार भगवान् को प्रिय न लगे, वह कभी भी मत किया कर । साँसारिक विषय और कामादि सभी विकारों को त्याग कर भगवद् भजनामृत - रस का ही पान किया कर ।
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दादू जे साहिब को भावे नहीं, सो बाट न बूझी रे ।
सांई सौं सन्मुख रही, इस मन सौं झूझी रे ॥ ५ ॥
हे जीव ! जो भगवान् को प्रिय नहीं लगता है ऐसे अन्याय - प्रधान पाप - मय मार्ग में चलना तो दूर, किन्तु तू तो उसके विषय में कोई भी बात मत पूछ । कदाचित् तेरा मन उधर जाय तो भी मन से प्रत्याहार रूप युद्ध करके उसे रोक और सदा भगवद् - भजन द्वारा भगवान् के सन्मुख ही स्थित रह ।
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दादू अचेत न होइये, चेतन सौं चित लाइ ।
मनवा सूता नींद भर, सांई संग जगाइ ॥ ६ ॥
प्राणी ! अपने कल्याण मार्ग में अचेत न रह, सावधान होकर ज्ञान स्वरूप ब्रह्म में चित्त लगा । यह तेरा मन मोह रूप घोर निद्रा में सूता पड़ा है । इसे ज्ञान द्वारा जगा कर प्रभु के संग करके प्रभु में लीन कर ।
(क्रमशः)
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