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॥ दादूराम सत्यराम ॥
*श्री दादू चरितामृत(भाग-२)*
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*= विन्दु ९६ =*
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*= स्मृति =*
“दादू करणी ऊपर जाति है, दूजा सोच निवार ।
मैली मध्यम हो गये, उज्वल ऊंच विचार ॥”
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*इतिहास -*
“केते मर माटी भये, बहुत बड़े बलवंत ।
दादू केते हो गये, दाना देव अनन्त ॥”
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*पुराण -*
“दादू धरती एक डग, दरिया करते फाल ।
हाकों पर्वत फाड़ते, सो भी खाये काल ॥”
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*अवतार चरित -*
“मुख बोल स्वामी तू अन्तर्यामी,
तेरा शब्द सुहावे रामजी ॥ टेक ॥
धेनु चरावन बेनु बजावन,
दर्श दिखावन कामिनी ॥ १ ॥
बिरह उपावन तप्त बुझावन,
अंग लगावन भामिनी ॥ २ ॥
संग खिलावन रास बनावन,
गोपी भावन भूधरा ॥ ३ ॥
दादू तारन दुरित निवारण,
संत सुधारण रामजी ॥ ४ ॥
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*अन्तरंग रास -*
“घट घट गोपी घट घट कान्ह,
घट घट राम अमर सुस्थान ॥ टेक ॥
गंगा यमुना अन्तरवेद,
सरस्वती नीर बहे प्रस्वेद ॥ १ ॥
कुंज केलि तहँ परम विलास,
सब संगी मिल खेलैं राम ॥ २ ॥
तहँ बिन बैना बाजैं तूर,
विकसे कमल चन्द अरु सूर ॥ ३ ॥
पूरण ब्रह्म परम परकास,
तहँ निज देखे दादू दास ॥”
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*तीर्थ -*
“काया कर्म लगाय कर, तीरथ धोवे आय ।
तीरथ मांहीं कीजिये, सो कैसे कर जाय ॥
जहँ तरिये तहँ डूबिये, मन में मैला होय ।
जहँ छूटे तहँ बंधिये, कपट न सीझे कोय ॥”
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*साहित्य -*
“शोधन पीवजी साज सँवारी,
अब वेगि मिलो तन जाइ वनवारी ॥ टेक ॥
साज श्रृंगार किया मन मांहीं,
अजहुँ पीव पतीजे नांहीं ॥ १ ॥
पीव मिलन को अह निशि जागी,
अजहूँ मेरी पलक न लागी ॥ २ ॥
जतन जतन कर पंथ निहारूं,
पिव भावे त्यों आप संवारूं ॥ ३ ॥
अब सुख दीजे जाउं बलिहारी,
कहै दादू सुन विपति हमारी ॥ ४ ॥”
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*नारी धर्म -*
“पतिव्रता गृह आपने, करे खसम की सेव ।
ज्यों राखे त्योंही रहै, आज्ञाकारी टेव ॥
दादू नीच ऊँच कुल सुन्दरी, सेवा सारी होय ।
सोइ सुहागिनी कीजिये, रूप न पीजे धोय ॥”
(क्रमशः)
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