शुक्रवार, 31 मार्च 2017

= मन का अंग =(१०/१३-५)


#daduji
卐 सत्यराम सा 卐 
*श्री दादू अनुभव वाणी* टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
*मन का अँग १०*
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जब लग यहु मन थिर नहीं, तब लग परस न होइ । 
दादू मनवा थिर भया, सहज मिलेगा सोइ ॥ १३ ॥ 
१३ में कहते हैं - मन स्थिरता से ही प्रभु प्राप्त होते हैं - जब तक भगवद् भजन में मन स्थिर नहीं होता तब तक परमात्मा का मिलन नहीं होता और जब स्थिर हो जाता है, भजन को छोड़ कर विषयों में नहीं दौड़ता, तब अनायास ही ब्रह्म साक्षात्कार हो जाता है । 
दादू बिन अवलम्बन क्यों रहे, मन चँचल चल जाइ । 
सुस्थिर मनवा तो रहे, सुमिरण सेती लाइ ॥ १४ ॥ 
१४ में मन स्थिरता का साधन कह रहे हैं - यह चँचल मन बिना किसी आश्रय के स्थिर नहीं रह सकता, तत्काल ही विषयों में दौड़ जाता है । जब इसे हरि - स्मरण में लगाया जाय तब ही यह मन सुस्थिर रहता है । 
सतगुरु चरण शरण चलि जांहीं, नित प्रति रहिये तिनकी छांहीं । 
मन स्थिर कर लीजे नाम, दादू कहै तहां ही राम ॥ १५ ॥ 
१५ में मन स्थिर होने से साक्षात्कार होता है यह कह रहे हैं - जहां मन को राम के नाम में स्थिर करके नाम स्मरण करोगे, वहां ही राम का साक्षात्कार हो जायगा ।
(क्रमशः)

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