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卐 सत्यराम सा 卐
*श्री दादू अनुभव वाणी* टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*= चेतावनी का अँग ९ =*
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दादू तन मन के गुण छाड़ि सब, जब होइ नियारा ।
तब अपने नैनहुं देखिये, परकट पीव प्यारा ॥ १३ ॥
जब जीव शरीर के हिंसादि और मन के कामादि सब गुणों को त्याग कर देहादि सँसार से अलग हो जाता है, तब अपने विचार - नेत्रों से वो बाह्य नेत्रों से भी अपने प्रियतम परब्रह्म स्वामी को प्रत्यक्ष ही देखता है ।
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दादू झाँती१ पाये२ पसु३ पिरी४, अँदर सो आहे५ ।
होणी६ पाणे७ बिच्च में, महर न लाहे८ ॥ १४ ॥
वे प्रियतम४ प्रभु तेरे भीतर ही हैं५ । तू अन्तर्मुख१ होकर देख३, तुझे प्राप्त होंगे । हमें भीतर ही मिले२ हैं । अब६ अपने७ मन में उस परमेश्वर की कृपा का अनुभव करना कभी भी मत छोड़८ ।
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दादू झाँती१ पाये२ पसु३ पिरी४, हांणें५ लाइ६ न बेर ।
साथ सभोई७ हल्लियो८, पोइ९ पसँदो१० केर११ ॥ १५ ॥
इति चितावनी का अँग समाप्त ॥ ९ ॥ सा - १०११ ॥
प्रियतम४ प्रभु को अन्तर्मुख१ होकर देख३, तुझे प्राप्त होंगे, हमें भीतर ही प्राप्त२ हुये हैं । अब५ देर मत लगा६, तेरे साथी सभी७ चले८ गये हैं । तू पीछे९ मायिक सँसार में क्या११ देख१० रहा है ?
इति श्री दादू गिरार्थ प्रकाशिका चेतावनी का अँग समाप्त ॥ ९ ॥
(क्रमशः)
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