#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*श्री दादू अनुभव वाणी* टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*= निष्कामी पतिव्रता का अँग ८ =*
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तुम हरि हिरदै हेत सौं, प्रकटहु परमानन्द ।
दादू देखे नैन भर, तब केता होइ आनन्द ॥८२॥
हे परमानन्द रूप हरे ! हमारा साधन तो ऐसा दिखाई नहीं देता कि - हम आप को प्रत्यक्ष रूप से देख सकेँ किन्तु आप अपने भक्त - वत्सलता रूप प्रेम से ही हमारे हृदय में प्रकट होने की कृपा करें । हम अपने नेत्रों को तृप्त करते हुए आपका साक्षात्कार करेंगे । जब आपका दर्शन होगा तब हमें कितना आनँद प्राप्त होगा, वह अकथनीय ही होगा, किसी प्रकार कहा न जा सकेगा ।
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प्रेम पियाला राम रस, हमको भावे येह ।
रिधि सिधि माँगैं मुक्ति फल, चाहे तिनको देह ॥८३॥
भगवन् ! हमको तो आपके प्रेम रूप प्याले में निरंजन राम का साक्षात्कार रूप भर करके दीजिये । हमें तो यही अच्छा लगता है । ऋद्धि, सिद्धि और मुक्ति आदि फल तो जो इनकी इच्छा करते हैं, उनको ही दीजिये, हमें नहीं चाहिए ।
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कोटि वर्ष क्या जीवना, अमर भये क्या होइ ।
प्रेम भक्ति रस राम बिन, का दादू जीवन सोइ ॥८४॥
प्रेमाभक्ति द्वारा राम - रस का पान किये बिना कोटि वर्ष जीवित रहने वो अमर होने से क्या लाभ होता है ? दु:ख ही मिलता है । वह दु:ख रूप जीवन क्या है ? व्यर्थ ही है । इस साखी से करडाले के दीर्घजीवी प्रेत को उपदेश कर भक्ति करने की आज्ञा दी थी । प्रसंग कथा - दृ - सु - सिं - त - ११ - १२ में देखो ।
(क्रमशः)
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