शुक्रवार, 17 मार्च 2017

= विन्दु (२)९४ =

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॥ दादूराम सत्यराम ॥
*श्री दादू चरितामृत(भाग-२)* 
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*= विन्दु ९४ =*
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*= संत समागमार्थ प्रार्थना =* 
द्वितीय पद – 
“निरंजन नाम के रसमाते, 
कोई पूरे प्राणी राते ॥ टेक ॥
सदा सनेही राम के, सोई जन साँचे । 
तुम बिन और न जान ही, रंग तेरे राचे ॥ १ ॥ 
आन न भावे एक तू, सत्य साधु सोई । 
प्रेम पियासे पीव के, ऐसा जन कोई ॥ २ ॥ 
तुम ही जीवन उर रहे, आनन्द अनुरागी । 
प्रेम मगन पिव प्रीतड़ी, लै तुम से लागी ॥ ३ ॥
जे तन तेरे रँग रँगे, दूजा रँग नांहीं । 
जन्म सफल कर लीजिये, दादू उन मांहीं ॥ ४ ॥” 
संतों का समागम प्राप्त होने की प्रार्थना कर रहे हैं - 

जो कोई प्राणी पूर्ण रूप से निरंजन राम के नाम चिन्तन - रस में अनुरक्त होकर मस्त हैं 
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और सदा राम स्वरूप के प्रेमी हैं, वे ही जन सच्चे हैं और हे प्रभो ! जो आप के बिना अन्य किसी को भी सत्य नहीं जानते, आप की भक्ति रूप रंग में ही रत्त हैं उन को अन्य कुछ भी प्रिय नहीं लगता है, एक आप ही प्रिय लगते हैं, वे ही सच्चे साधु हैं । 
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जिस के मन इन्द्रियादि एक मात्र प्रभु - प्रेम के प्यासे हों, ऐसा भक्त कोई बिरला ही होता है । उस के हृदय में आप ही जीवन रूप से रहते हैं । वह आप के स्वरूपानन्द का ही प्रेमी होता है । 
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अपने प्रियतम आपके प्रेम में मग्न रहता है, उसकी वृत्ति आप से ही लगी रहती है । इस प्रकार जो भक्त आपके भक्ति - रंग में रंगे हुये हैं, उनके हृदय पर दूसरा रंग नहीं चढ़ता है । 
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हमारा भी निवेदन है कि - उन संतों के समागम में रहकर हम जीवन को सफल करें । हे प्रभो ! इस समय आपने उक्त प्रकार के संतों का ही समागम दिया है, यह आपकी महान् कृपा है । 
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उक्त प्रकार संतों के दर्शन से संतों की कृपा का फल कथन करने पर तथा संत समागम हेतु प्रभु से प्रार्थना करने पर सब संत प्रसन्न हुये । फिर परस्पर प्रणामादि शिष्टाचार होने पर संतो ने कहा - अब आप भी चलिये तब दादूजी महाराज ने कहा ६ मास और यहां रहकर आऊंगा । फिर प्रातःकाल सब सहसा वहां ही अन्तर्धान होकर आकाश - मार्ग से लौट गये । 
(क्रमशः)

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