🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*(ग्रन्थ ६) वेदविचार१*
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*= मंगलाचरण = दोहा*
*परमातमहिं प्रणांम करि, गुरु संतनु सिर नाइ ।*
*'वेदविचार' हिं कहत हौं, सुनहु सकल चित लाइ ॥१॥*
मैं(स्वामी सुन्दरदास) सर्वप्रथम परब्रह्म परमात्मा को, अपने गुरुदेव (श्रीदादूदयालुजी महाराज) को एवं(भूत, भविष्यत्, वर्तमान काल के सब) सन्तों को प्रणाम कर 'वेदविचार' नामक ग्रन्थ का व्याख्यान प्रारम्भ कर रहा हूँ । अध्यात्म साधना करनेवाले जिज्ञासुओं को इसे श्रद्धा-भक्ति-विशवासयुक्त हृदय से सुनना चाहिये ॥१॥
{१. वेदविचार ग्रन्थ में वेदों के स्वरूप और उनकी शिक्षा और गुणों पर स्वामीजी ने बड़ा मार्मिक विचार किया है । वेद को वृक्ष कह कर उसके त्रिकांड(तीन डालों) को -कर्म, उपासना और ज्ञान -को कह कर उनका
पत्र पुष्प, फल आदि से वर्णन कर वृक्ष का रुपक सार्थक किया है ।
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आगे वेदों की उपयोगिता बहुत बढ़िया रीति से कही है । विधिवाक्य, निषेधवाक्य, एवं रोचक तथा भयानक वाक्य का निर्देश पांडित्यपूर्ण है । वेदरूपी बृक्ष के कर्मरूपी पत्ते हैं, भक्तिरूप पुष्प हैं । ज्ञानरूपी फल हैं । यह ज्ञान-फल निजस्वरूप, आत्मज्ञान, अपरोक्षानुभूति ज्ञानानन्द हैं । यही वेद का महाफल है ।}
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*= वेद का अपौरुषेयत्व =*
*वेद प्रगट ईश्वर वचन, ता महिं फेर न सार ।*
*भेद लहैं सद्गुरु मिलें, तब कछु करै बिचार ॥२॥*
सर्व प्रथम जिज्ञासु को यह तथ्यात्मक बात भलीभाँति समझ लेनी चाहिये कि वेद साक्षात्(सीधे) ईश्वर द्वारा प्रोक्त (कहा हुआ) है(किसी साधारण मनुष्य का नहीं) । इन वेदवचनों(वेदमन्त्रों) का सूक्ष्म ज्ञान वही प्राप्त कर सकता है जिसे सौभाग्य से सद्गुरु मिल जाँय ॥२॥
(क्रमशः)
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