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॥ दादूराम सत्यराम ॥
*श्री दादू चरितामृत(भाग-२)*
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*= विन्दु ९६ =*
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*= षट् दर्शन =*
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*१. न्याय* -
न्याय में वीतराग के जन्म का अभाव कहा है और दादूजी ने भी वैराग्य की ओर संकेत किया है -
“दादू एक सुरति से सब रहा, पंचों उनमनि लाग ।
यहु अनुभव उपदेश यहु, यहु परम योग वैराग ॥”
“दादू सब बातन की एक है, दुनियां से दिल दूर ।
सांई सेती संग कर, सहज सुरति ले पूर ॥”
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*२. वैशेषिक* -
वैशेषिक ने ईश्वर अनुग्रह द्वारा यथार्थ ज्ञान से मुक्ति मानी है, वैसे ही दादूवाणी में भी कहा है -
“दादू सब संसार तज, रहै निराला होय ।
अविनाशी के आश्रय, काल न लागे कोय ॥”
वृत्तिज्ञान -
“दादू सेवा सुरति से, प्रेम प्रीति से लाय ।
जहँ अविनाशी देव है, तहँ सुरति बिना को जाय ॥”
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*३. धर्म मीमांसा* -
“कर्मों के वश जीव है, कर्म रहित सो ब्रह्म ।
जहँ आतम तहं परमातमा, दादू भागा भ्रम ॥”
“राहु मिले ज्यों चन्द को, गहण मिले ज्यों सूर ।
कर्म मिले यूं जीव को, नख शिख लागे पूर ॥”
“दादू चन्द मिले जब राहु को गहण मिले जब सूर ।
जीव मिले जब कर्म को, राम रह्या भरपूर ॥”
“कर्म कुहाड़ा अंग वन, काटत बारंबार ।
अपने हाथों आपको, काटत है संसार ॥”
“कर्म फिरावे जीव को, कर्मों को करतार ।
करतार को कोई नहीं, दादू फेरनहार ॥”
संकर्षण कांड - संकर्षण कांड में तथा पंचरात्र में भी उपासना का ही वर्णन है, वही वाणी में भी देखिये -
“दादू ऐकै दशा अनन्य की, दूजी दशा न जाय ।
आपा भूले आन सब, ऐकै रहै समाय ॥”
(क्रमशः)
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