गुरुवार, 9 मार्च 2017

= निष्कामी पतिव्रता का अंग =(८/५८-६०)


#daduji
卐 सत्यराम सा 卐 
*श्री दादू अनुभव वाणी* टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
*= निष्कामी पतिव्रता का अँग ८ =* 
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*पतिव्रत* 
दादू रहता राखिये, बहता देइ बहाइ । 
बहते संग न जाइये, रहते सौं ल्यौ लाइ ॥५८॥
५८ - ६३ में पतिव्रत रूप अनन्यता प्राप्त करने की प्रेरणा कर रहे हैं - निश्चल ब्रह्म को ही हृदय में रक्खो, चँचल मायिक प्रपँच को त्याग दो । परिवर्तनशील साँसारिक देवादि के साथ मत लगो, सदा एकरस रहने वाले परब्रह्म में ही वृत्ति लगाओ ।
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जनि बाझैं१ काहू कर्म सौं, दूजे आरँभ जाइ । 
दादू एकै मेल गह, दूजा देइ बहाइ ॥५९॥ 
द्वैत भाव के द्वारा बाह्य वृत्ति से व्यवहार में जाकर किसी काम्य कर्म के आरँभ से अपने को सँसार में न बांधो१ । एकमात्र अद्वैत ब्रह्म रूप अपने मूलको ही ग्रहण करके द्वैत भाव रूप व्यभिचार को त्यागो । 
बावें देखि न दाहिने, तन मन सन्मुख राखि । 
दादू निर्मल तत्व गह, सत्य शब्द यहु साखि ॥६०॥ 
साँसारिक दु:ख - सुख रूप बाँयीँ - दाहिनी दिशा की ओर मत देख, ये दु:ख - सुखादि तो आने जाने वाले हैं, सदा एकरस कोई भी नहीं रहता । तू तो अपने तन मन को साधन द्वारा भगवत् के सन्मुख रखते हुये परब्रह्म रूप निर्मल तत्व का अभेद चिन्तन ही ग्रहण कर । सत्य परमात्मा के वेदादिक शब्दों की यही साक्षी है कि परब्रह्म की प्राप्ति अभेद चिन्तन द्वारा ही होती है । 
(क्रमशः)

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