#daduji
॥ दादूराम सत्यराम ॥
*श्री दादू चरितामृत(भाग-२)*
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*= विन्दु ९३ =*
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सातवें दिन नारायणा नरेश ने आकर त्रिपोलिया पर विराजे हुये दादूजी महाराज को सत्यराम बोलकर प्रणाम किया और सामने बैठ गये फिर अवसर देखकर राजा ने प्रार्थना की ।
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*= धाम निर्माण हेतु प्रार्थना =*
स्वामीजी महाराज ! धाम निर्माण के लिए आज्ञा दीजिये, कहां बनाया जाय ? आपकी आज्ञा की देर है आज्ञा मिलते ही तो जहां तक होगा धाम शीघ्र ही बन जायगा । राजा की बात सुनकर दादूजी महाराज ने कहा - राजन् ! हम परब्रह्म रामजी की आज्ञा में ही चलते हैं, उनकी आज्ञा की प्रतीक्षा कर रहे हैं । उनकी आज्ञा जहां की होगी वहां बना देना । कहा भी है -
“बैठे हैं निराणे स्वामी उठे हैं आमेर से जु,
आये सीकरी से और गये उत जानिये ।
आल्हण की कामरी लिई है गुरु आज्ञा सुन,
भारी जल दियो पाय सांची मन आनिये ॥
चौला गुजरात से आयो सो पहर्यो आज्ञा मान,
पायो है प्रसाद जो सरोंज हु को मानिये ।
बाहर गुफा से आये भीतर उथों ही गये,
स्वामी ऐसे रहे सदा और सब ठानिये ॥”
इतना सुनकर राजा प्रणाम करके बोला - भगवन् ! आज कार्य विशेष होने से मैं अधिक नहीं ठहर रहा हूं, अतः कृपा करके जाने की आज्ञा दीजिये । तब दादूजी ने कहा - अच्छा जाइये अपना कार्य भी करना ही होता है । फिर राजा अपने साथियों साहित दादूजी महाराज को प्रणाम करके राज - भवन को चले गये ।
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*= सभा में शेष का प्रकट होना =*
आठवें दिन प्रातः नारायणा नरेश नारायणसिंह अपने कुछ भाइयों तथा मंत्रियों के सहित दादूजी के दर्शन व सत्संग के लिए त्रिपोलिया पर आये और सत्यराम बोलकर सबने प्रणाम किया फिर सब बैठ गये । आज राजा के मन में विशेष रूप से यही विचार चल रहा था कि स्वामीजी महाराज आज्ञा दे देते तो धाम निर्माण का कार्य आरंभ कर दिया जाता ।
इसी समय सत्संग सभा के मध्य दादूजी के सामने सहसा शेषनाग प्रकट हो गये और दादूजी को प्रणाम करके फण से उठने का संकेत किया । परम योगेश्वर दादूजी महाराज नागराज का संकेत को समझ गये और सभासदों से बोले - आप लोग कोई भय नहीं करना, ये शेष भगवान् हैं और मुझे यहां से उठने का संकेत करके अपने साथ चलने को कह रहे हैं । हो सकता है, ये राजा की जो तीव्र इच्छा हो रही है धाम निर्माण की, उसे ही पूर्ण करने पधारे हों । अतः मैं इनके साथ जा रहा हूँ, आप लोग इनके आने का मार्ग छोड़कर इधर उधर हो जायें । दादूजी महाराज के उक्त वचन सुनकर सब इधर - उधर हो गये । सब के हट जाने पर नागराज दादूजी को अपने साथ चलने का पुनः संकेत करके सहजगति से चलने लगे । दादूजी महाराज भी उनके पीछे - पीछे चलने लगे । नारायणा के नरेश नारायणसिंह तथा उपस्थित सत्संगी और दादूजी के शिष्य संत भी आश्चर्य चकित होकर दादूजी महाराज के पीछे-पीछे चलने लगे ।
नागराज शेषजी शनैः शनैः त्रिपोलिया से चलकर तालाब के पश्चिम तट की पाल के पास एक खेजड़े के वृक्ष के मूल में जाकर अपना फण पृथ्वी पर मार कर दादूजी को संकेत किया यहां पर बैठ जाइये । उनके संकेत को समझकर दादूजी महाराज ने कहा - मैं समझ गया हूँ कि आप मेरे को यहां निवास करने का संकेत कर रहे हैं । अतः मैं यहां ही निवास करूंगा । दादूजी के स्वीकार करने पर शेषनाग ने अपने फण से दादूजी महाराज को प्रणाम किया फिर सहसा वहां ही अन्तर्धान हो गये । यह देखकर सबको अति आश्चर्य हुआ और राजा - प्रजा ने हृदय से यह स्वीकार कर लिया कि दादूजी महाराज निश्चय ही कोई अवतारी पुरुष हैं ।
(क्रमशः)
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