#daduji
॥ दादूराम सत्यराम ॥
*श्री दादू चरितामृत(भाग-२)*
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*= विन्दु ९५ =*
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वाणी में किसी भी प्रकार की शंका साधक को नहीं करनी चाहिये । दादूजी महाराज के उक्त वचन से ज्ञात होता है कि - “दादू वाणी सर्व शास्त्रमयी है ।” “सर्वशास्त्रमय दादू वाणी, सूत्र रूप से सभी बखाणी ॥” अर्थात् दादूवाणी सर्व शास्त्र का सार रूप है । दादूवाणी में सूत्र रूप से सभी शास्त्रों की बातें प्राप्त होती हैं । उक्त कथन - गागर में सागर समाने के समान है और यथार्थ ही है । उक्त कथन पर कुछ विचार करना परम आवश्यक है । इसलिये यहां “वाणी परिचय” प्रसंग आरंभ किया जाता है ।
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*= श्री दादू वाणी परिचय =*
श्री दादू वाणी एक साखी - भाग और दूसरा पद - भाग इन दो भागों में विभाजित है । दादू वाणी को दादूजी महाराज ने अपनी लेखनी से नहीं लिखा था । दादूवाणी में जो उपदेश रूप वचन हैं, वे भक्तों को तथा शिष्यों को उपदेश देते समय उनके मुख - कमल से पद्य मय ही निकलते थे । और जो विरह, विनय आदि प्रसंग के पद्य हैं वे भी समय - समय पर बोलते थे । तब उन सब को उनके शिष्य उसी समय लिख लेते थे । उन लिखने वालों में सबसे अधिक मोहनजी दफतरी ने ही संग्रह किया था । मोहनजी दफतरी प्रसंग से लिखा करते थे और प्रत्येक प्रसंग के पृष्ठ खाली छोड़ते जाते थे, फिर जब पूर्व प्रसंग के वचन दादूजी महाराज के मुख कमल से निकलते थे तब उनको उसी प्रसंग में लिख देते थे । उक्त प्रकार दादूजी महाराज के ब्रह्मलीन होने के समय तक उनके मुख - कमल से वाणी निकलती रही थी उसकी संख्या ग्रंथ गणना के अनुसार पांच हजार है । मोहन दफतरी ने साखी - भाग को विषय दृष्टि से ३७ अंगों में विभाजित किया था और पद - भाग को २७ रागों में विभाजित किया था । फिर रज्जबजी ने उन ३७ अंगों के प्रत्येक अंग में आवांतर अनेक अंग दिखाये हैं और पदों पर भी विषय अंकित किये हैं । उक्त प्रकार ‘श्रीदादूवाणी ग्रंथ’ रचना का परिचय परंपरा से संतों के द्वारा मिलता रहा है ।
(क्रमशः)
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