#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*श्री दादू अनुभव वाणी* टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*= चेतावनी का अँग ९ =*
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दादू अचेत न होइये, चेतन सौं कर चित्त ।
ये अनहद जहां तैं ऊपजे, खोजो तहां ही नित्त ॥ ७ ॥
हे प्राणियो ! धनादि जड़ पदार्थों के मोह से अचेत मत होओ, सावधान होकर चेतन आत्मा की ओर चित्त को फेरो और जहां अनाहत चक्र में अनाहत ध्वनि उत्पन्न होती है, वहां ही मन को अन्तर्मुख करके ब्रह्म को नित्य प्रति खोजो । अवश्य साक्षात्कार होगा ।
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दादू जन ! कुछ चेत कर, सौदा लीजे सार ।
निखर कमाइ न छूटणा, अपने जीव विचार ॥ ८ ॥
हे जन ! कुछ तो चेत कर, असत्य व्यापार में क्यों फंसा है ? तुझे ज्ञान, भक्ति आदि सार वस्तुएँ ही अपने श्वास - द्रव्य से खरीदनी चाहिए । तू अपने हृदय में ही विचार करके देख, आत्म - ज्ञान रूप शुद्ध कमाई के बिना इस सँसार बन्धन से कभी भी नहीं छूट सकेगा ।
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दादू कर सांई की चाकरी, ये हरि नाम न छोड़ ।
जाणा है उस देश को, प्रीति पिया सौं जोड़ ॥ ९ ॥
प्राणी ! परमात्मा की निष्काम भक्ति कर, भक्ति के साधक ये जो - निरंजन - राम, परब्रह्म आदि हरि के नाम हैं, उन्हें कभी भी मत छोड़ । जो तुझ को प्रिय लगे उसी नाम का निरँतर चिन्तन कर । तू स्वयँ इस सँसार देश में दु:ख से व्याकुल होकर सुख - स्वरूप ब्रह्म - प्रदेश की अभिलाषा कर ही रहा है । अत: तुझे वहां जाना है तो ब्रह्मरूप स्वामी से प्रीति कर, तब ही जा सकेगा, अन्यथा नहीं ।
(क्रमशः)
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