🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*(ग्रन्थ ५) स्वप्नप्रबोध*
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स्वप्न मांहिं स्वर्गहिं गयौ, स्वप्नै नरकहिं दीन ।
सुंदर जाग्यौ स्वप्न तें, धर्म अधर्म न कौन ॥१३॥
स्वप्न में को स्वर्ग का सुख भोग आवे, दूसरा नरक में जाकर अपार कष्ट भोगने लगे, जागने पर वे दोनों ही अपने उन मिथ्या भोगों पर हँसने लगते हैं और अपने धर्म अधर्म का अभिमान नहीं करते ॥१३॥
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स्वप्नै मैं दुर्बल भयौ, स्वप्नै माँहि सपुष्ट ।
सुंदर जाग्यौ स्वप्न तें, नहीं रूप नहिं कुष्ट ॥१४॥
स्वप्न में कोई कुष्ठरोग के कारण अपने शरीर को कृश या सड़ा गला देखे फिर दूसरा कुष्ठी अपना स्वस्थ सुपुष्ट शरीर देखे, जागने पर सचाई जान कर उन्हें अपने शरीर के कुष्ठ या सुपुष्टता का कोई भ्रम नहीं रह जाता ॥१४॥
(क्रमशः)
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