शुक्रवार, 10 मार्च 2017

= विन्दु (२)९३ =




#daduji
॥ दादूराम सत्यराम ॥
*श्री दादू चरितामृत(भाग-२)* 
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*= विन्दु ९३ =*
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*= धाम निर्माण हेतु आज्ञा =* 
नागराज के अन्तर्धान हो जाने के पश्चात् दादूजी महाराज जहां नागराज ने फण पृथ्वी पर मारा था वहां ही विराज गये और नारायणा नरेश नारायणसिंह को बोले - राजन् ! भगवान् की आज्ञा यहां धाम बनाने की हो गई है । अतः अब तुम यहां पर धाम बनाने का कार्य आरंभ कर सकते हो । दादूजी महाराज के श्रीमुख से उक्त वचन सुनते ही राजा को अति प्रसन्नता हुई । राजा हाथ जोड़कर तथा मस्तक नमाकर बोले - भगवन् बड़ी कृपा, आज मेरी अभिलाषा के अनुरूप आज्ञा मुझे आपके श्री मुख से मिल गई । मैं मेरी भाग्य की कहां तक श्लाघा करूं आज मैं कृतकृत्य हो गया हूँ । अब यह आपका सेवक शीघ्रअतिशीघ्र धाम बनाने का प्रयत्न करेगा । 
इतना कहकर राजा ने मस्तक नमा कर दादूजी को प्रणाम किया और आज्ञा लेकर अपने साथियों के सहित राज - भवन को चले गये । दादूजी महाराज के शिष्य संत भी दादूजी महाराज की आज्ञा होने पर अपने आसन त्रिपोलिया से खेजड़ाजी के पास ले आये । 
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*= प्रथम पर्ण कुटीरों का निर्माण =* 
संतों को वहां खुले आकाश में तथा वृक्ष के नीचे देखकर शीघ्रातिशीघ्र राजा तथा प्रजा ने अनेक पर्णकुटीरें बनवाकर उनमें निवास करने की संतो को प्रार्थना की । फिर सब संत दादूजी महाराज की आज्ञा से पर्ण कुटीरों में निवास करने लगे । धाम तैयार होने तक दादूजी महाराज भी एक पर्णशाला में विराजते थे । दादूजी महाराज की पर्णशाला के आगे एक विशाल छप्पर सत्संग सभा के लिये भी बनवा दिया था । उसमें उच्च आसन पर विराज कर दादूजी महाराज अपने शिष्य संतों को तथा आगत सत्संगियों को सायं प्रातः उपदेश करते थे । 
दादूजी महाराज के यहां आकर विराजने पर नारायण सरोवर का पश्चिम तट परम शांति का केंद्र हो गया था । अब यहां दूर - दूर से साधक संत आने लगे थे । आने वाले संतों तथा भक्तों की सेवा में नारायणा नरेश तथा उनकी प्रजा सहर्ष भाग लेती थी । दादूजी महाराज के आने पर नारायणा नगर की काया पलट ही हो गया था । सबमें सेवा भाव, ईश्वरभक्ति, दैवीगुण प्रतिदिन बढ़ते ही जा रहे थे । 
इति श्रीदादूचरितामृत विन्दु ९३ समाप्तः ।
(क्रमशः)

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