बुधवार, 8 मार्च 2017

= स्वप्नप्रबोध(ग्रन्थ ५/९-१०) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
https://www.facebook.com/DADUVANI
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*(ग्रन्थ ५) स्वप्नप्रबोध*
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*स्वप्नै खोई बस्तु कौं, पाई स्वप्ने मांहि ।*
*सुन्दर जाग्यौ स्वप्न तें, पाई खोई नांहि ॥९॥* 
कोई स्वप्न में अमूल्य खजाना पा जाय या दूसरा अपने पास का धन भी खो बैठे, जागने पर वे दोनों स्वप्न का स्वप्नत्व यथार्थतया जानकर पा जाने या खो जाने में अपना कोई राग-द्वेष नहीं रखते ॥९॥
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*स्वप्नै मैं भूल्यौ फिर्यौ, स्वप्नै पाई बाट ।*
*सुन्दर जाग्यौ स्वप्न तें, औघट रह्यौ न घाट ॥१०॥*
स्वप्न में कोई रास्ता भूल कर बियावान जंगल में जा भटके या फिर दूसरा वस्तुतः भटका हुआ प्राणी रास्ता पा जाय, जागने पर दोनों को अपनी स्वप्नावस्था वाली स्थिति से न दुःख होता है, न सुख ॥१०॥
(क्रमशः)

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