सोमवार, 3 अप्रैल 2017

= उक्त अनूप(ग्रन्थ ७/१६-७) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*= उक्त अनूप१ (ग्रन्थ ७) =*
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*= शिष्य की ज्ञानप्राप्ति =*
*उनि वह निश्चय धारि कै, मुक्त भयौ ततकाल ।*
*देख्यौ रजु कौं रजु तहां, दूरि भयौ भ्रम ब्याल ॥१६॥*
शिष्य ने सद्गुरु का उपदेश अपने शुद्ध ह्रदय में श्रद्धा-विश्वास के साथ धारण कर लिया । परिणामस्वरूप वह तत्काल१ भव-बन्धन से मुक्त हो गया । तब उसने रज्जु को रज्जु ही समझा, उसमें उसका सर्प-भ्रम नष्ट हो गया ॥१६॥
(१. तुलना कीजिये-- "क्षिप्रं भवति धर्मात्मा शश्वच्छान्ति निगच्छति ।"
(भ० गो० ९.३१)
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*ज्यौं रवि के उद्योत तें अन्धकार मिटि जाइ ।*
*तैसैं ज्ञान प्रकाश तें, भ्रम सब गयौ बिलाइ ॥१७॥*
जैसे सूर्य के उदय होते ही अन्धकार विनष्ट हो जाता है, उसी तरह गुरुपदेश से हुए ज्ञान के प्रकाश से उस शिष्य का समग्र द्वैतभ्रम तत्काल विनष्ट हो गया ॥१७॥
(क्रमशः)

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