सोमवार, 17 अप्रैल 2017

= मन का अंग =(१०/५२-४)

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卐 सत्यराम सा 卐 

*श्री दादू अनुभव वाणी* टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
*मन का अँग १०*
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*याचक*
मन इन्द्री अँधा किया, घट में लहर उठाइ ।
सांई सद्गुरु छाड़ कर, देख दीवाना जाइ ॥५२॥
५२ - ५७ में इन्द्रियाधीन तथा मनाधीन मन की अवस्था बता रहे हैं - इन्द्रियों ने हृदय में विषय - उपभोग की लहर उठाकर मन को सत्यासत्य विवेक - नेत्रों से रहित अन्धा कर दिया है । अत: भगवान् और सद्गुरु का बताया हुआ कल्याण का मार्ग छोड़ कर तथा विषय - उपभोग में बुराइयों को देखकर भी उन्मत्त हुआ विषयों की ओर ही जाता है ।
दादू कहै - राम बिना मन रँक है, याचे तीनों लोक ।
जब मन लागा राम सौं, तब भागे दारिद दोष ॥५३॥
राम - भजन के बिना मन इन्द्रियों के अधीन होकर सँतोष न होने से रँक बन गया है और स्वर्ग, मृत्यु, पाताल इन तीनों में कहीं भी जाय, सभी जगह भोगों की याचना करता है किन्तु किसी - किसी का मन जब राम - भजन में लग जाता है तब उसके भोगाशा रूप दरिद्रता और याचनादि दोष हट जाते हैं ।
इन्द्री के आधीन मन, जीव जन्तु सब याचे ।
तिणे तिणे के आगे दादू, तिहुँ लोक फिर नाचे ॥५४॥
इन्द्रियाधीन मन, शीतला के वाहन गधा, भैरूँ के वाहन कुत्ते आदि सभी जीव जन्तुओं से याचना करता है और अधिक क्या कहैं - यह तो तुलसी, विल्व, बेरी आदि वृक्ष तृणों के आगे भी याचना करता हुआ भोगाशा पूर्ति के लिए तीनों लोकों में नाचता फिरता है ।
(क्रमशः)

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