#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*श्री दादू अनुभव वाणी* टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*मन का अँग १०*
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मन निर्मल थिर होत है, राम नाम आनन्द ।
दादू दर्शन पाइये, पूरण परमानन्द ॥ २२ ॥
जब मन निष्काम कर्म द्वारा निर्मल होकर स्थिर होता है तब ही राम - नाम चिन्तन के शास्त्र और सँतों द्वारा कथित भजनानन्द प्राप्त होता है । फिर ब्रह्म - साक्षात्कार होकर परिपूर्ण रूप से ब्रह्मानन्द रूप परमानन्द प्राप्त होता है ।
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*विषय - विरक्ति*
दादू यों फूटे तैं सारा भया, सँधे सँधि मिलाइ ।
बाहुड़२ विषय न भूँचिये१, तो कबहुं छूट न जाइ ॥ २३ ॥
२३ - २६ में वैराग्य का लाभ बता रहे हैं - विषयासक्ति चोट द्वारा भगवत् चिन्तन से टूटे हुये मन को पूर्व कथित साधन पद्धति और वैराग्य द्वारा पुन: भगवन्नाम में स्थिरता रूप सारापन साधकों को प्राप्त हुआ है और यह स्थिरता मन और परमात्मा को मिला देती है । उनकी भेद रूप स्थिति नहीं रहती, मन प्रभु में लय हो जाता है । यदि पुन: विषयों की ओर बदल२ कर विषय भोगने१ में आसक्त नहीं हो तो कभी भी जीव, परमात्मा से अलग होकर नाना योनि में नहीं जा सकता ।
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दादू यहु मन भूला सो गली, नरक जाण के घाट ।
अब मन अविगत नाथ सौं, गुरु दिखाई बाट ॥ २४ ॥
जब सद्गुरु ने वैराग्य और अभ्यास के उपदेश द्वारा भगवत् प्राप्ति का मार्ग दिखा दिया, तब यह सँसार - सागर के नरक रूप घाट को जाने वाली विषयासक्ति रूप गली, जिसमें बारँबार जाता था, उसे भूल गया=दु:खप्रद जानकर त्याग दिया और अब इन्द्रियों के अविषय अपने स्वामी परमात्मा के चिन्तन में ही लगा रहता है ।
(क्रमशः)
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