शनिवार, 22 अप्रैल 2017

= मन का अंग =(१०/६७-९)


#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*श्री दादू अनुभव वाणी* टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
.
*मन का अँग १०*
.
तन में मन आये नहीं, चँचल चहुं दिशि जाइ ।
दादू मेरा जीव दुखी, रहे न राम समाइ ॥६७॥
यह चँचल मन शरीर में स्थित आत्मस्वरूप ब्रह्म की ओर नहीं आता । विषयाशा से चारों ओर दौड़ता है, यह राम में लय होकर नहीं रहता, इसलिए मेरा हृदय व्यथित रहता है ।
.
कोटि यत्न कर कर मुये, यहु मन दह दिशि जाइ ।
राम नाम रोक्या रहे, नाहीं आन उपाइ ॥६८॥
अनेक साधक कोटि यत्न करते - करते मर गये किन्तु उनका मन दश इन्द्रियों के विषय रूप दिशाओं में जाता ही रहा । राम नाम के निरन्तर चिन्तन रूप अभ्यास से रोका हुआ, आत्म स्वरूप ब्रह्म में स्थिर रह जाता है । अन्य ऐसा सुगम उपाय कोई भी नहीं है ।
.
यहु मन बहु बकवाद सौं, वायु भूत१ ह्वै जाइ ।
दादू बहुत न बोलिये, सहजैं रहे समाइ ॥६९॥
यह मन अति विवादादि करने से वायु रूप१ हो जाता है=अति चँचल हो जाता है । अत: मनोनिरोध की इच्छा वाले साधक को बहुत नहीं बोलना चाहिए, प्रत्युत निर्द्वन्द्व रूप सहजावस्था द्वारा ब्रह्म में लीन रहना चाहिए ।
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें