शुक्रवार, 28 अप्रैल 2017

= ९ =

卐 सत्यराम सा 卐
काया की संगति तजै, बैठा हरि पद मांहि ।
दादू निर्भय ह्वै रहै, कोई गुण व्यापै नांहि ॥ 
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साभार ~ Chetna Kanchan Bhagat

*आंतरिक स्वास्थ्य ही वास्तविक स्वास्थ्य है।*

अब ऐसे गुरू हैं जो कहते हैं, 'जो भी तुम्हें चाहिए, तुम्हें ध्यान से मिलेगा। धन की वर्षा हो जाएगी। बस गहरे ध्यान में मांगो, और यह हो जाएगा।' यह तुम्हारी वासनाओं की भाषा बोलना है। सत्य इससे एकदम उल्टा है। अगर तुम मुझसे पूछो, अगर तुम सच में ध्यान करो तो तुम जीवन में असफल रहोगे, बुरी तरह असफल। 
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अगर तुम सफल हो रहे हो, वह सफलता खो जाएगी क्योंकि ध्यान तुम्हें इतना शांत, इतना अहिंसक, इतना प्रेमपूर्ण, इतना अ-प्रतिस्पर्धी, इतना अहंकारहीन बना देगा, कि सफलता की कौन परवाह करता है। ध्यान तुम्हें इतना आनंदित करेगा कि कौन चाहता है कल की चिन्ता करना? आज को कल के लिए कौन दांव पर लगाना चाहता है?
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ध्यान तुम्हें निश्चित ही अंदर से धनवान बनाता है। अंदर से तुम आनंदित होओगे, लेकिन बाहर से इसकी कोई गारंटी नहीं दी जा सकती कि तुम धनवान हो जाओगे, कि तुम सफल हो जाओगे, कि तुम बहुत स्वस्थ हो जाओगे, कि कभी कोई बीमारी तुम्हें नहीं पकड़ेगी। यह सब एकदम बकवास है।
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महर्षि रमण कैंसर से मरे, रामकृष्ण परमहंस कैंसर से मरे। क्या तुम इनसे बड़े ध्यानी खोज सकते हो? जे कृष्णमूर्ति कई बीमारियों से ग्रसित हैं; वे लगभग बीस वर्षों से भयंकर सिरदर्द से पीड़ित हैं। सिरदर्द इतना भयंकर है कि कभी-कभी वे अपना सिर दीवार से टकराना चाहते हैं। क्या तुम इनसे बड़ा ध्यानी खोज पाओगे? क्या तुम इनसे बड़ा जीवित बुद्ध खोज पाओगे? 
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अगर जे. कृष्णमूर्ति सिरदर्द से पीड़ित हैं, अगर रमण महर्षि कैंसर से मरते हैं, अगर रामकृष्ण कैंसर से मरते हैं, क्या तुम सोचते हो ध्यान तुम्हें स्वास्थ्य देगा? हां, एक तरह से यह तुम्हें अधिक स्वस्थ बनाएगा और अधिक संपूर्ण, लेकिन केवल एक बहुत आंतरिक रूप से। नीचे गहरे में तुम अखंड बनोगे, नीचे गहरे में एक आंतरिक आध्यात्मिक स्वास्थ्य होगा।
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रमण कैंसर से मर रहे हैं, लेकिन उनकी आखें आनंद से भरी हैं। वह हंसते हुए मरते हैं। यह असली स्वास्थ्य है। उनका शरीर एक गहरी पीड़ा में है, लेकिन वह मात्र साक्षी हैं। यह है ध्यान।
ओशो, 
द धम्मपदा: द वे औफ द बुद्धा, वौल्यूम.9, टौक #5




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