शुक्रवार, 28 अप्रैल 2017

= अद्भुत उपदेश(ग्रन्थ ८/३८-९) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
https://www.facebook.com/DADUVANI
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*= अद्भुत उपदेश(ग्रन्थ ८) =*
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*= गुरुपदेश ~ श्रीगुरुरुवाच =*
*यह निश्चय करि धरि मन, तोहि कहौं समुझाइ ।*
*बै जै तेरै चारि सुत, तिनि तूं दियो बहाइ ॥३८॥*
"हे मन ! तूँ यह निश्चयपूर्वक समझ ले । मैं तुझे बता दे रहा हूँ कि ये जो तेरे बाक़ी चार पुत्र है, वे सब पथभ्रष्ट हो चके हैं । उनसे तेरा कोई भला नहीं होनेवाला है; क्योँकि तूँने उनको रास्ते पर लाने की कभी कोशिश ही नहीं की ॥३८॥
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*श्रवनूं तेरौ सुत भलौ, चार्यों महा कपूत ।*
*वह तौकौं निस्तारि है, उनतें जाइ अऊत ॥३९॥*
"हाँ, यह तेरा श्रवनूं भला लड़का है । बाक़ी चारों तो महाकपूत निकले कि उनहोंने अपनी कुल-मर्यादा भी धो डाली । यह श्रवनूं ही तुम्हें विपत्ति से उबारेगा । बाक़ी उन चारों से तूँ कभी सुख की आशा न रखना । वे सब तुझे अपने कारनामों से अधिक से अधिक विपत्ति में ही फँसाने की कोशिश करेंगे ॥३९॥
(क्रमशः)

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