मंगलवार, 18 अप्रैल 2017

= १९० =

卐 सत्यराम सा 卐
कोरा कलश अवाह का, ऊपरि चित्र अनेक ।
क्या कीजे दादू वस्तु बिन, ऐसे नाना भेष ॥ 
============================
साभार ~ Ajay Singh

जो व्यक्ति भीतर से परिपूर्ण हो, उसे प्रदर्शन की कोई आवश्यकता नहीं होती है । जो संतुष्ट है, प्रसन्न है, उसे किसी को बताने की जरूरत नहीं पड़ती कि वह खुश है । बताने की जरूरत उसे पड़ती हैं जो भीतर से खाली हो । जिसके भीतर अभाव हो, जो मरूभूमि समान हैं । वह बाहर की सुंदरता को ओढकर यह बताने का प्रयास करता हैं कि मैं भरा हुआ हूँ, सुंदर हूँ । वस्त्र दो क्षण के लिए सुंदर दिखने का आभास करा सकता है, सुंदर नहीं बना सकता ।
.
हमारे देश में संत, महात्मा खुले बदन रहते हैं, लंगोटी पहने रहते हैं, लेकिन उनके चेहरे पर जो अपार शांति हैं, वह कीमती वस्त्र और आभूषण पहने हुए लोगों के चेहरे पर भी नहीं होती है । वहाँ उनके चेहरे पर कोई गहरी खाई, गहरा सन्नाटा दिखाई नहीं पड़ता । कोई पुराना खंड़हर, किसी अतीत की कहानी, उनके चेहरे पर दिखाई नहीं पड़ती । तभी तो करोड़ों रूपये के जेवरात पहनकर लाखों लोग भगवान के सामने हाथ जोड़े खड़े रहते हैं लेकिन उन्हें शांति नहीं मिलती है ।
.
सच कहा जाए, तो जो भी लोग बाहर के संसार में सुख खोजते हैं, उन्हें बाहर सुख नहीं मिलता, दुख ही मिलता है । बाहर केवल दुख ही है । कहीं कोई सुखी नहीं है ।बाहर कराहते हुए, छटपटाते हुए पीड़ा में रोते हुए हम सभी मिलते हैं । हमें बाहर जो चकाचौंध दिखाई पड़ती है, वह नकली हैं जो रूप हमें आकर्षित कर रहा है, वह असली नहीं है ।
.
जो व्यक्ति नकली चेहरा लेकर बाहर निकलता हैं वह कहीं न कहीं अपने मन के घावों को भरना चाहता है, अपनी पीड़ा को छिपाना चाहता है । जिस व्यक्ति का मन खाली रहता है, वह अपना खालीपन किसी को दिखाना नहीं चाहता। इसलिए वह जब भी बाहर निकलता हैं तो रंग बिरंगे कपड़े पहन कर निकलता है अगर हम सभी अपने माता- पिता, भाई- बंधु के साथ प्रेम - भाव से रहें, हम सभी एक दूसरे की सुख दुख की साथी बनें तो हमें कोई नकली वस्तु की आवश्यकता नहीं पड़ेगी । मन की शांति के लिए कहीं बाहर खोज नहीं करनी पड़ेगी । मन को सदा सत्य मार्ग पर लायें हम सभी प्रभू को याद करें यही हमारे असली जीवन का सत्य मार्ग होगा ।
॥ जय शिव ॥

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें