शुक्रवार, 14 अप्रैल 2017

= अद्भुत उपदेश(ग्रन्थ ८/९-१०) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
https://www.facebook.com/DADUVANI
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*= अद्भुत उपदेश(ग्रन्थ ८) =*
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*= पुत्रों की कुमार्ग-गामिता =*
*ते सुत मद मांते फिरहिं, गनैं न काहू रंच ।*
*लोक वेद मर्याद तजि, निशि दिन करहिं प्रपंच ॥९॥*
उस मन के वे पाँचों पुत्र जवानी में मदमस्त होकर संसार में फिरने लगे, उन्हें किसी की कुछ भी लज्जा-शर्म नहीं रह गयी । उन्होंने अपनी कुल-क्रमागत लोक-वेद की मर्यादा का पूर्णतः उल्लंघन कर जगत्प्रपंच में ही अपने को पूर्णतः व्यस्त कर लिया ॥९॥
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*पंचौं दौड़े पंच दिशि, अपने अपने स्वाद ।*
*नैनूं राच्यौ रूप सौं, श्रंवनूं राच्यौ नाद ॥१०॥*
इतना ही नहीं, वे पाँचों इस मामले में भी एक नहीं रह सके कि जगत्प्रपंच में ही फँसना है तो सब एक साथ एक जगह फँसे । वे तो पाँचों अपने-अपने ग्राह्य विषय के पाँच रास्ते पकड़कर दौड़ने लगे । उनमें एक लड़का नैनूं रूप की और दौड़ने लगा तो दूसरा लड़का श्रवनूं नाद के चक्कर में पड़कर अपने को और अपने साथ कुल को बर्बाद करने लगा ॥१०॥
(क्रमशः)

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