मंगलवार, 18 अप्रैल 2017

= अद्भुत उपदेश(ग्रन्थ ८/१७-८) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*= चर्मूँ की गतिविधि=*
*चर्मूँ ठग्यौ स्पर्श ठगि, कोमल अंग सुखाइ ।*
*कोमल सज्जा बस्त्र पुनि, नारी सौं लपटाइ ॥१७॥*
पाँचवापुत्र चर्मूँ भी पीछे क्यों रहता, वह भी स्पर्श ठग के वशीभूत हो गया । नाना प्रकार के सुकोमल अंगों का स्पर्श करना और उसी में आनन्द लेना उसका काम रह गया । दिन-रात कोमल शय्या पर पड़े रहना, कोमल वस्त्र पहनना एवं कोमल स्त्री से लिपटे रहना ही उसका जीवन हो गया ॥१७॥
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*ये पंचौं इनि ठगि ठगे, भये दुखित अरु दीन ।*
*पिता सुतनि के संग ही, सदा रहै अधीन ॥१८॥*
इस तरह ये पाँचों उन पाँच ठगों के वश में होकर पूर्णतः बाह्यवृत्ति हो गये और अपना सब कुछ गँवा बैठे । धीरे-धीरे ये अपने क्रियाकलापों से दुःखी हो चले, उसमें इनको लज्जा अनुभव होने लगी । पर करते क्या ? परवश थे । पिता(मन) भी इन्हीं के साथ लगा रहकर अपने को हर तरह से गँवा बैठा । लाचार वह भी इन्हीं के पीछे चलने में अपनी भलाई मानता रहा ॥१८॥
(क्रमशः)

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