सोमवार, 10 अप्रैल 2017

= अद्भुत उपदेश(ग्रन्थ ८/१-२) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
https://www.facebook.com/DADUVANI
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*अथ अद्भुत उपदेश(ग्रन्थ ८)* 
[इस लघु ग्रन्थ में महाकवि ने एक कथा-रूपक के सहारे मन तथा इन्द्रियों को विषयों की तरफ से हटाने के लिये सरल उपाय बताया है । कठिन से कठिन और गम्भीर से गम्भीर बात को सरल और सबके लिये सुगम भाषा में समझा देना कवि की विशेषता है ।] 
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*= मंगलाचरण = दोहा =*
*सद्गुरु पायनि परत हौं, मोहि दिखायौ पन्थ ।* 
*तातें सुन्दर कहत है, रचि करि अद्भुत ग्रन्थ ॥१॥* 
मैं सद्गुरु(श्रीदादूदयालुजी महाराज) के चरणों में सादर साष्टांग दण्डवत् प्रणाम करता हूँ जिन्होंने मुझे भवसागर से पार उतरने का मार्ग दिखा दिया है । उन्हीं की कृपा से मैं इस 'अद्भुत ग्रन्थोपदेश' ग्रन्थ की रचना प्रारम्भ कर रहा हूँ ॥१॥ 
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*कथारूपक-* 
*परमातम सुत१ आतमा, ताकौ सुत मन धूत ।* 
*मन के सुत ये पंच हैं, पंचौं भये कपूत ॥२॥* 
(कवि इन्द्रियनिग्रह पर उपदेश के लिये कथारूपक प्रारम्भ कर रहे हैं--) परमात्मा इस सृष्टिवंश का मूल पुरुष है उसका पुत्र है जीवत्मा । उस(जीवात्मा) का पुत्र है मन, जो कि स्वभाव और कर्म से प्रथम श्रेणी का धूर्त है । उस मन की ये पाँच इन्द्रियाँ  पुत्ररूप हैं । ये पाँचों इन्द्रियरूपी पुत्र व्यवहार में कपूत निकल गये ।(अर्थात् इन्होंने वंश की मर्यादा डुबो दी । इनके पितामह तथा प्रपितामह द्वारा बताया हुआ जो मार्ग था कि संसार के विषयों के लोभ में न फँसना, उससे ये विरत होकर स्वच्छन्दता से शब्द-स्पर्शादि विषयों की तरफ दौड़ने लगे) ॥२॥ 
(१. परमातम सुत = ब्रह्म का अंशरूप जीव ।(जीव को ईसाई ईश्वर का पुत्र कहते हैं सो भी मिलाया जाय कि सनातनधर्म रूपी समुद्र में सब रत्नों का समावेश है) । उस आत्मा का सकाश वा प्रकाश रूप मन हैं जो बड़ा धूर्त वा चालाक है, चंचल है । और मन के आभास रूप में पाँचों इन्द्रियाँ हैं । इन को कपूत इसलिए कहा कि अपने पूर्वज आत्मा तथा परमात्मा से बहिर्मुख होकर विषयों में मन को फंसाये रखती हैं । मानों फिरंद और बागी हैं ।)
(क्रमशः)

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