शनिवार, 22 अप्रैल 2017

= अद्भुत उपदेश(ग्रन्थ ८/२६-७) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
https://www.facebook.com/DADUVANI
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*= अद्भुत उपदेश(ग्रन्थ ८) =*
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*= श्रवनूं का पिता के पास जाना =*
*तब श्रवनूं मन पै गयौ, बात कही समुझाइ ।* 
*तोहि नींद क्यौं परत है, चहुँ दिशि लागी लाइ ॥२६॥*
तब श्रवनूं गुरु की आज्ञानुसार अपने पिता(मन) के पास पहुँचा, और कहने लगा - "पिताजी ! गुरु जी ने कृपा करके मुझे सावधान किया है । हम तो बड़े-बड़े बदमाशों से घिर गये हैं । हमारी जानपर खतरा आ बना है । पिताजी ! आप कैसे बेफिक्री से सो रहे हैं ? हमलोग तो चारों तरफ आग से घिरे हुए हैं ! ॥२६॥ 
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*अहो पिता हम सब ठगे, पंच शत्रु हैं लार ।* 
*शब्द स्पर्श जु रूप रस, गंध महा बटमार ॥२७॥* 
"पिताजी ! हम सब ठगे गये । हमारे चारों ओर हमारे पाँच शत्रुओं ने घेरा डाल रखा है । ये पाँच है - शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गन्ध । ये सब के सब शातिर लुटेरे हैं" ॥२७॥  
(क्रमशः)

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