मंगलवार, 11 अप्रैल 2017

= अद्भुत उपदेश(ग्रन्थ ८/३-४) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
https://www.facebook.com/DADUVANI
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*= अद्भुत उपदेश(ग्रन्थ ८) =*
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*= रवि-बिम्ब का दृष्टांत =*
*रवि१ समान परमातमा, दर्पप्न बुद्धि हिं जांनि ।*
*तामहिं प्रतिबिबिंत भयौ, जीवातम पहिचांनि ॥३॥*
(१. इसमें सूर्य और दर्पण का दृष्टांत दिया है । वेदान्त में जलपूरित घटों का दृष्टांत प्रसिद्ध ही है ।) = इनमें परमात्मा(मूल-पुरुष) सूर्य के समान है । बुद्धि(मन) दर्पण के सदृश है । उसमें जीवात्मा(चेतन) का प्रतिबिम्ब पड़ता है--यह सिद्धान्त मत समझ लेना चाहिये ॥३॥
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*दर्पप्न२ कौ आभास ज्यौं, कंस पात्र मैं होइ ।*
*त्यौं आतमा प्रकाश मन, देह मध्य है सोइ ॥४॥*
(२. दर्पण से उतरता काँसे या कोई भी चमकदार धातु में जो सूर्य का प्रकाश होता है वह दर्पण से हीन होता है और इसी को आत्मा से मन में उतरना और उससे देह में उतरना बताया है । प्रकाश की उत्तरोत्तर कमी रहती है सो प्रकट ही है ।)= जैसे सूर्य प्रतिबिम्बित दर्पण का आभास काँसे के पात्र में गिरे, उसी प्रकार आत्मप्रतिबिम्बित मन का प्रकाश देह(शरीरेन्द्रिय) पर गिरता है ॥४॥
(क्रमशः)

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