रविवार, 2 अप्रैल 2017

= उक्त अनूप(ग्रन्थ ७/१४-५) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
https://www.facebook.com/DADUVANI
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*= उक्त अनूप१ (ग्रन्थ ७) =*
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*= गुरु का समाधान=*
*सद्गुरु देख्यौं शुद्ध अति, मन वच काय सहेत ।*
*भली भूमि मैं बीजिये, तब वह निपजै खेत ॥१४॥*
उस सद्गुरु ने एक ही नजर में शिष्य की उत्कट श्रद्धा जान ली । और यह भी जान लिया की यह शिष्य मन, वचन तथा शरीर-कर्म से पूर्णतः निर्मल है । यदि मैं इसे तत्त्वोपदेश करूँ तो भलीभाँति समझ लेगा; जैसे शुद्ध ऊर्वर भूमि में डाला हुआ बीज जल्दी पैदा होता हो और शीघ्र ही अच्छा और अधिक से अधिक अन्न देता है ॥१४॥
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*तासौं सद्गुरु यौं कह्यौ, तू है ब्रह्म अखण्ड ।*
*चिदानन्द चैतन्य घन, व्यापक सब ब्रह्मण्ड ॥१५॥*
तब गुरुदेव ने उसे उपदेश किया--" हे शिष्य ! तू अखण्ड ब्रह्म है । तूं इस सकल ब्रह्माण्ड में व्याप्त चिदानन्द स्वरूप चेतन है ।" ॥१५॥
(क्रमशः)

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