मंगलवार, 2 मई 2017

= मन का अंग =(१०/९७-९)


#daduji
卐 सत्यराम सा 卐 
*श्री दादू अनुभव वाणी* टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
*मन का अँग १०*
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श्रावण हरिया देखिये, मन चित ध्यान लगाइ ।
दादू केते युग गये, तो भी हर्या न जाइ ॥९७॥
जैसे कोई श्रावण में अँधा हो जाय तो वह अपने मन में श्रावण की हरियाली का ही ध्यान लगाता रहता है । बहुत समय व्यतीत हो जाने पर भी वह हरियाली मन से दूर नहीं होती । वैसे ही मायिक प्रपँच में अपने ज्ञान नेत्रों को खोकर अँधा हुआ प्राणी अपने मन में मायिक प्रपँच का ही ध्यान लगाता रहता है । कितने ही युग व्यतीत हो गये तो भी अभी तक इस मायिक प्रपँच का ध्यान मन से दूर नहीं होता ।
जिसकी सुरति जहां रहे, तिसका तहं विश्राम ।
भावै माया मोह में, भावै आतम राम ॥९८॥
जिसकी वृत्ति जिसमें रहती है, उसकी उसी में जाकर स्थिति होती है, चाहे मायिक मोह में रहे वो आत्मस्वरूप राम में रहे । मायिक मोह में वृत्ति रहने से जन्मादि सँसार की प्राप्ति होती है और आत्माराम में रहने से अपने आत्मस्वरूप राम की प्राप्ति होती है । अत: आत्माराम में ही वृत्ति रखनी चाहिए ।
जहं मन राखे जीवताँ, मरताँ तिस घर जाइ ।
दादू बासा प्राण का, जहं पहली रह्या समाइ ॥९९॥
लोक में देखा जाता है - जिसका मन पहले जिसमें संलग्न रहता है, आगे चलकर उस प्राणी का निवास वहां ही होता है । वैसे ही जीवितावस्था में विशेष करके जिसमें मन रखा जाता है, मृत्यु होने पर उसका पुनर्जन्म उसी घर में होता है ।
(क्रमशः)

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