मंगलवार, 6 जून 2017

=८६ =

卐 सत्यराम सा 卐
*दादू दूजा कुछ नहीं, एक सत्य कर जान ।*
*दादू दूजा क्या करै, जिन एक लिया पहचान ॥*
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*दीपों की बातें*
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एक बार की बात है, दीपावली की शाम थी, मैं दिये सजा ही रहा था कि एक ओर से दीपों के बात करने की आवाज़ सुनाई दी। मैंने ध्यान लगा कर सुना। चार दीपक आपस में बात कर रहे थे। कुछ अपनी सुना रहे थे कुछ दूसरों की सुन रहे थे। 
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पहला दीपक बोला- "मैं हमेशा बड़ा बनना चाहता था, सुंदर, आकर्षक और चिकना घड़ा बनना चाहता था पर क्या करूँ ज़रा-सा दिया बन गया।"
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दूसरा दीपक बोला- "मैं भी अच्छी भव्य मूर्ति बन कर किसी अमीर के घर जाना चाहता था। उनके सुंदर, सुसज्जित आलीशान घर की शोभा बढ़ाना चाहता था। पर क्या करूँ मुझे कुम्हार ने छोटा-सा दिया बना दिया।"
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तीसरा दीपक बोला- "मुझे बचपन से ही पैसों से बहुत प्यार है काश मैं गुल्लक बनता तो हर समय पैसों में रहता।"
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चौथा दीपक चुपचाप उनकी बातें सुन रहा था। 
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अपनी बारी आने पर मुस्करा कर अत्यंत विनम्र स्वर में कहने लगा- "एक राज़ की बात मैं आपको बताता हूँ, कुछ उद्देश्य रख कर आगे पूर्ण मेहनत से उसे हासिल करने के लिए प्रयास करना सही है लेकिन यदि हम असफल हुए तो भाग्य को कोसने में कहीं भी समझदारी नहीं हैं। यदि हम एक जगह असफल हो भी जाते हैं तो और द्वार खुलेंगे। जीवन में अवसरों की कमी नहीं हैं, एक गया तो आगे अनेक मिलेंगे। अब यही सोचो, दीपों का पर्व - दिवाली आ रहा है, हमें सब लोग खरीद लेंगे, हमें पूजा घर में जगह मिलेगी, कितने घरों की हम शोभा बढ़ाएँगे। इसलिए दोस्तों, जहाँ भी रहो, जैसे भी रहो, हर हाल में खुश रहो, द्वेष मिटाओ। खुद जलकर भी दूसरों में प्रकाश फैलाओ, नाचो गाओ, और खुशी-खुशी दिवाली मनाओ।"
'ब्लॉग से साभार'

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