#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*श्री दादू अनुभव वाणी*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*माया का अँग १२*
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*विरक्तता*
माया मगहर खेत खर, सद्गति कदे न होइ ।
जे बँचे ते देवता, राम सरीखे सोइ ॥ ४९ ॥
४९ - ५१ में मायिक सँसार से विरक्त होने की प्रेरणा कर रहे हैं - जैसे मगहर क्षेत्र (काशी के समीप गँगा पार) में मरने वाला गधे की योनि में जाता है, वैसे ही माया में अनुरक्त रहने वाले की सद्गति नहीं होती । जो मायिक मोह से बचे हैं, वे मनुष्य होते हुये भी देवता हैं और निर्द्वन्द्व होने से राम के समान ही हैं ।
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कालर खेत न नीपजे, जे बाहे सौ बार ।
दादू हाना बीज का, क्या पच मरे गंवार ॥ ५० ॥
यदि ऊसर भूमि में सौ बार बीज डाला जाय तो भी कुछ नहीं उत्पन्न होगा, प्रत्युत बीज की ही हानि होगी । वैसे ही अज्ञानी प्राणी मायिक पदार्थों से परम सुख प्राप्ति के लिए कितना ही प्रयत्न करे तो भी क्या परमसुख प्राप्त होगा ? अर्थात् नहीं ।
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दादू इस सँसार सौं, निमष न कीजे नेह ।
जामन मरण आवटणा, छिन छिन दाझे देह ॥ ५१ ॥
इस मायिक सँसार से एक निमेष जितने समय भी प्रेम नहीं करना चाहिए । इसमें स्नेह करने से जन्म - मरण रूप अग्नि में उबलना पड़ता है और जीवन काल मेँ क्रोध - ईर्ष्यादि से क्षण - क्षण में हृदय जलता रहता है ।
(क्रमशः)
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