बुधवार, 28 जून 2017

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卐 सत्यराम सा 卐
*जीवों का संशय पड़या, को काको तारै ।*
*दादू सोई शूरमा, जे आप उबारै ॥* 
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साभार ~ Chetna Kanchan Bhagat
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एक बड़ी अदभुत घटना है कि महावीर का एक शिष्य था गोशालक। बाद में वह बगावती हो गया और महावीर के विरोध में हो गया। महावीर कहते थे, जीवन में सभी कुछ नियति से बंधा है, भाग्य है और यहां सब जो होने को है, वही हो रहा है, और जो होने को है वही होगा। इसलिए मनुष्य व्यर्थ कर्ता का भाव न ले। भाग्य के सिद्धांत का सारा सार इतना है, कि तुम अपने अहंकार को निर्मित मत करो।
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शिष्य गोशालक के साथ महावीर एक जंगल से गुजर रहे हैं। गोशालक को उनकी बातों पर शक है। गोशालक ने कहा कि आप कहते हैं, जो होना है वही होगा। यह पौधा लगा है, एक छोटा-सा पौधा लगा था। क्या कहते हैं आप, यह बचेगा कि नहीं बचेगा?
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महावीर ने कहा, यह बचेगा। गोशालक ने उस पौधे को उखाड़कर फेंक दिया। वह महावीर को यह दिखला रहा था कि देखें, आप कहते हैं, बचेगा; यह नहीं बचता। कहां गया आपका सिद्धांत ? वह खिलखिलाकर हंसने लगा। उसने कहा महावीर से बोले, अब कहें। महावीर ने कहा, थोड़ी प्रतीक्षा ! थोड़े समय की जरूरत है।
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वे दोनों गांव चले गए। दुपहर वर्षा हुई। सांझ जब वे वापस लौट रहे थे, महावीर ने कहा, देख ! उस पौधे ने फिर जड़ें जमा ली थीं। वर्षा हो गई थी, जमीन गीली हो गई थी। वह फिर खड़ा हो गया था। उसने जड़ें जमा ली थीं।
महावीर ने कहा, यह पौधा बचेगा। और कहते हैं, गोशालक की भी हिम्मत न पड़ी दुबारा उसे तोड़कर फेंकने की। सामने ही खड़ा था !
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जो हमें नहीं दिखाई पड़ते जीवन के सूत्र, वे भी अहर्निश संलग्न हैं। वृक्ष भी अकारण नहीं हैं, पशु भी अकारण नहीं हैं, पक्षी भी अकारण नहीं हैं क्योंकि अकारण अस्तित्व नहीं है।
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तुम जैसे आए हो, वैसे ही सभी आए हैं। तुम जहां से आए हो, वहीं से सभी आए हैं। तुम जहां जा रहे हो, वहीं सभी जा रहे हैं। यह सिर्फ मनुष्य का अहंकार है, जो सोचता है, हम परमात्मा को खोज रहे हैं, कि हम धर्म को खोज रहे हैं। सभी की खोज वही है। और निश्चित ही जिसकी खोज है उसकी तरक्की भी है; जिसकी खोज है उसका विकास भी है।
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ओशो ~ कहे कबीर दीवाना
प्रवचन-१८

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