🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*= गुन-उत्पत्तिनीसांनी(ग्रन्थ ११) =*
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*कीट पतंग जहाँ लगे, गिनती न गिनांनी ।*
*चौराशी लख कहन कौं, जिव जाति वखांनी ॥१६॥*
इसी सृष्टि में उस परमात्मा ने ऐसे-ऐसे सूक्ष्म कीट, पतंग आदि बनाये कि उनकी साधारण पद्धति से गणना भी नहीं की जा सकती । इस पूरी जीव जाति को उन्होंने चौरासी लाख योनियों में विभक्त किया ॥१६॥
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*शेष नाग बैकुण्ठ लौं, बिस्तार बितांनी ।*
*चवदह तीनौं लोक मैं, जाकी रजधानी ॥१७॥*
इसी तरह इस सृष्टि का निवास-भेद पाताल लोक से वैकुण्ठ लोक तक निर्माण कर सामान्यतः चौदह लोकों तथा तीन लोकों में विभाजन किया और वह परमात्मा सर्वत्र व्याप्त होकर रहने लगा ॥१७॥
(क्रमशः)
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