सोमवार, 5 जून 2017

= गुरुसम्प्रदाय(ग्रन्थ १०/२५-६) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
https://www.facebook.com/DADUVANI
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*= गुरुसम्प्रदाय(ग्रन्थ १०) =*
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*= चोपाई =*
*योगानन्द तासु गुरु कहिये ।*
*जोग युगति मैं निश दिन रहिये ।*
*आतम परमातम सौं जोरै ।*
*याही योग जुगति सौं तारै ॥२५॥*
उनके गुरु थे श्री योगानन्दजी । वे योगाभ्यास में ही दिन-रात लगे रहते थे । आत्मा(जीव) का परमात्मा से तादात्म्य स्थापित करना ही उनका काम रह गया था । योगाभ्यास वे इसलिये करते थे कि जगत् से रहा-सहा नाता भी टूट जाय ॥२५॥
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*तिन कौ गुरु कबहूँ न वियोगी ।*
*भोगानन्द ब्रह्म रस भोगो ।*
*इन्द्रिय भोग मृषा करि जानैं ।*
*इन्द्रिय परैं भोग मन मानै ॥२६॥*
उनके गुरु ब्रह्म से कभी वियुक्त नहीं होते थे । नाम था श्रीब्रह्मानन्द । वे ब्रह्मरसपान में ही मस्ती अनुभव करते थे । इन्द्रियों द्वारा भोगे जाने वाले भोगों को तो उनहोंने हमेशा मिथ्या ही समझा । वे तो चाहते थे कि इन्द्रिय-भोगों से परे जो भोग(ब्रह्म) है मन उसी में निशदिन लगा रहे ॥२६॥
(क्रमशः)

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