#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
साचा समर्थ गुरु मिल्या, तिन तत्त दिया बताइ ।
दादू मोटा महाबली, घट घृत मथि कर खाइ ॥
मथि करि दीपक कीजिये, सब घट भया प्रकाश ।
दादू दीवा हाथि करि, गया निरंजन पास ॥
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साभार ~ Krishnacharandas Aurobindo
मनुष्य पृथ्वी पर सभी जीव-जंतुओं में विशेष केवल इसीलिए है की उसके पास सत्-असत् का निर्णय कर पानेवाला मन है । बाकी जीव सृष्टि उनकी संवेदना और स्वाभाविक प्रवृत्ति से ही प्रेरित होते हैं। मनुष्य अपने परमार्थ का साधन तथा सभी जीवों पर प्रेम कर सकता है तथा उनके कल्याण के लिये प्रयत्न कर सकता है...... अन्यथा "जीवो जीवस्य जीवनम्" यही सृष्टि का नियम सर्वत्र दिखता है। एक जीव दूसरे जीव का आहार है.... लेकिन मनुष्य चूंकि सबसे प्रगतिशील होने से उसे अपने परब्रह्म या आत्मस्वरुप को पाने के लिये सभी में आत्मतत्व का चिंतन करना पडता है.... हिंसा को त्यागना पड़ता हैं। हिंसा का त्याग मनुष्य को करना ही पड़ेगा यदि उसे इस दुःखपुर्ण संसार के जन्म-मरण के चक्र से छूटकर अपने मूल शाश्वत-आनंदमय स्वरुप को पाना है।
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काम, क्रोध, लोभ, मद, मोह, मत्सर आदी षडरिपुओं को जीतने के लिये संतों की सेवा तथा संग करें।(विषयोंको जीतकर/ईन्द्रियों को अपने वशमें करनेवाले निष्काम संत ऐसे भगवान के भक्त होते हैं जो निरंतर भगवान की मंगलमयी कथाओं में ही डूबे रहते हैं.... संसार की बातों का स्मरण त्यागकर....!!!! वो संत(केवल गेरुए वस्त्र या बाहरी चिन्हों तक सिमित रहकर माया के फेरे में /शिष्य परिवार से घिरे आश्रमों की जुगाड में पड़े रहते तथा धनाकांक्षा से भगवान की कथा करते हैं....!! )
भगवान की कथाओंका नित्य कथन, श्रवण, मनन और भगवान के अनंत नामों का /गुणों का किर्तन, जप .... यही मार्ग है विकारों पर जय पानेका.... नान्यत् पन्थः -- और कोई सुगम रास्ता नहीं।
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(कथयन्तिश्च माम् नित्यम् तुष्यन्ति च रमन्ति च - मेरी(भगवान की)कथाओं को एक दूसरे से कह-सुनकर उसी में आनंद मानकर रमनेवाले ही भक्त होते हैं....न की मंदिरों में अपने मतलब के लिये जानेवाले...!!!)
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ब्रह्माजी के मानसपुत्र देवर्षि नारद और सनकादिक मुक्त होकर भी भगवान की कथा तथा हरिःशरणम् मन्त्र का निरंतर पान करते रहते हैं.....और मूढ मनुष्य राजनेता को लेकर डूबा रहता है....!!!! दोनों काल के गाल में पड़े अपने आपको देश का तारणहार समझकर मूढतापूर्ण तरीके से धर्मपालन को तिलाञ्जली देकर अधर्म के विकास को ही देश का विकास मानते हैं। हमारे शास्त्रों में भगवान का स्पष्ट निर्देश है कि सृष्टि का दोहन/जीवों की अनदेखी तथा हिंसा को वे बर्दाश्त नहीं करेंगे... शास्त्रों में धर्म के निर्देशों के पालन से ही हर जीव का विकास होगा और मनमानी से अकाल, सूखा, बाढ, भूकंप, महामारी, आय.एस.आय.एस./मुसलमान/ख्रिश्चनों जैसे जीवों के हिंसा में लिप्त दुष्टों से संसार पीड़ित ही रहेगा.... और विनाश की डगर पर चलेगा।
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ये अनंत विस्तारवाला विश्व ब्रह्माण्ड जिन के रोमकुपों में घूम रहे अगणित ब्रह्माण्डों के साथ पड़ा रहता है उस परमपुरुष(श्रीराधाजीके प्रथम पुत्र)का स्मरण, उनकी लीलावतारों की कथा के श्रवण में, उनके नामों के कीर्तन में ही मनुष्य जीवन का श्रेय-प्रेय है। ऐसे अनंत भगवान की विभुति रूप भगवान शेष के हज़ारों मस्तक पर यह भूमण्डल एक सरसों के दाने के बराबर दिखता है वे अनंत भगवान करुणा करके सात्विक रुप में दृष्टिगोचर होते हैं कि मनुष्य उनकी आराधना, उपासना करके अपना परमार्थ साधे...!!!
जय श्रीराधागोपाल...जय श्रीकृष्ण बलराम।।
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