शुक्रवार, 16 जून 2017

= माया का अंग =(१२/७३-५)


#daduji
卐 सत्यराम सा 卐 
*श्री दादू अनुभव वाणी* 
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
*माया का अँग १२*
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*जाया माया मोहनी* 
काल कनक अरु कामिनी, परिहर इनका संग । 
दादू सब जग जल मुवा, ज्यों दीपक ज्योति पतँग ॥ ७३ ॥ 
७३ - ७४ में साधक को कनक कामिनी - संग त्याग की प्रेरणा कर रहे हैं - कनक और कामिनी काल रूप हैं, इनका संग छोड़ । जैसे दीपक ज्योति में पतँग जल मरते हैं, वैसे ही कनक - कामिनी के मोह में पड़कर सब जगत् काम - लोभादि से जल - जल कर मर रहा है । 
जहां कनक अरु कामिनी, तहं जीव पतँगे जाँहिं । 
अग्नि अनन्त सूझे नहीं, जल - जल मूये माँहिं ॥ ७४ ॥ 
जहां भी कनक और कामिनी रूप अग्नि होती है, वहां ही जीव - पतँग चले जाते हैं और काम, लोभ, राग, द्वेषादि रूप अग्नि की अनन्त ज्वालायें भी उन्हें दाहक रूप नहीं दीखतीं, इसीलिए उनमें जल - जल कर मर जाते हैं । 
*चित्त कपटी* 
घट माँहीं माया घणी, बाहर त्यागी होइ । 
फाटी कंथा पहर कर, चिन्ह करे सब कोइ ॥ ७५ ॥ 
७५ - ७६ में दँभी त्यागी का परिचय दे रहे हैं - अन्त:करण में तो अत्यधिक माया की आशा रखते हैं और बाहर से त्यागी - से बने रहते हैं । फटी गुदड़ी पहन कर त्यागियों के सभी चिन्ह करके दिखाते हैं । 
(क्रमशः)

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