मंगलवार, 13 जून 2017

= माया का अंग =(१२/६७-९)

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卐 सत्यराम सा 卐 
*श्री दादू अनुभव वाणी* 
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
*माया का अँग १२*
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विषया का रस मद भया, नर नारी का मांस । 
माया माते मद पिया, किया जन्म का नाश ॥ ६७ ॥ 
विषयासक्ति रूप मद्य और नरनारी का सँयोग ही माँस है । मनुष्य इस माँस और मद्य को खा पीकर तथा कनकादिक धन से मतवाले होकर मानव जन्म का नाश कर देते हैं । 
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दादू भावै शाक्त भक्त हो, विषय हलाहल खाइ । 
तहं जन तेरा रामजी, स्वप्ने कदे न जाइ ॥ ६८ ॥ 
चाहे शक्ति का उपासक शाक्त हो वो विष्णु का उपासक भक्त हो, यदि वह विषय रूप हलाहल विष खाता हो तो, हे रामजी ! आपके सेवक भक्त को तो कभी भी उसके पास नहीं जाना चाहिए । 
खाडा बूजी भक्ति है, लोहरवाड़ा माँहिं । 
परकट पैंडाइत१ बसें, तहं सँत काहे को जाँहिं ॥ ६९ ॥ 
लोहरवाड़े ग्राम में धोखा देकर गड्ढे में पटकने की भक्ति रखने वाले बटमार१ बसते हैं । यह प्रत्यक्ष ही है, अत: वहां सन्तों को नहीं जाना चाहिए । लोहरवाड़े में श्री दादूजी महाराज को मारने का षड्यँत्र रचा था, उसे देखकर ही यह साखी कही थी । प्रसंग कथा - दृ - सु - सि - त - ७/२७२ में देखो। 
काम - शीर्षक के अनुकूल अर्थ इस प्रकार है - रक्त और माँस के बाड़े (अहाते) नारी के शरीर में प्राणियों को धोखा देकर मूत्र - मार्ग रूप गड्ढे में पटककर वीर्य - धन को अपहरण करने की भक्ति रखने वाला काम रूप बटमार प्रत्यक्ष में ही रहता है । वहां सन्त किस लिये जायेंगे ? वह तो भक्ति में परम बाधक है ।
(क्रमशः)

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