#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*श्री दादू अनुभव वाणी*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*माया का अँग १२*
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*आसक्तता*
दादू झूठे तन के कारणे, कीये बहुत विकार ।
गृह दारा धन सँपदा, पूत कुटुंब परिवार ॥ ४४ ॥
४४ - ४५ में कहते हैं - प्राणी शरीर में आसक्त होकर ही परमार्थ से गिरता है - मिथ्या शरीर की आसक्ति के कारण ही प्राणी काम - क्रोधादि बहुत - से विकारों का आदर करता है । घर, स्त्री, धनादि ऐश्वर्य, पुत्र आदि कुटुम्बियों से घिरा रहता है ।
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ता कारण हत आतमा, झूठ कपट अहँकार ।
सो माटी मिल जायगा, विसर्या सिरजनहार ॥ ४५ ॥
शरीर के लिए झूठ, कपट, अहँकारादि करके अपनी आत्मा का हनन करता है, आत्म - ज्ञान से वँचित रहता है तथा भगवान् को भी भूलजाता है, वही शरीर एक दिन मिट्टी में मिल जायगा ।
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*विरक्तता*
दादू जन्म गया सब देखताँ, झूठी के संग लाग ।
साचे प्रीतम को मिले, भाग सके तो भाग ॥ ४६ ॥
४६ - ४७ में मन को माया से विरक्त होकर ब्रह्म चिन्तन करने की प्रेरणा कर रहे हैं - हे मन ! मिथ्या मायिक प्रपँच में लगकर तूने नरजन्म का सब समय देखते - देखते ही खो दिया । अब भी यदि इससे दूर हो सके तो शीघ्र दूर होजा । जिससे शेष समय में अपने प्रियतम सत्य ब्रह्म का चिन्तन करके उससे मिल सके ।
(क्रमशः)
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