बुधवार, 7 जून 2017

= ८८ =

卐 सत्यराम सा 卐
*दादू जब लग जिय लागैं नहीं, प्रेम प्रीति के सेल ।*
*तब लग पिव क्यों पाइये, नहिं बाजीगर का खेल ॥*
*दादू जे तूं प्यासा प्रेम का, तो किसको सेतैं जीव ।* *शिर के साटै लीजिये, जे तुझ प्यारा पीव ॥*
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साभार ~ Rajnish Gupta

*(((((((((( कंगन सरोवर ))))))))))*
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श्री कृष्ण ने व्रज लौटने का निश्चय किया. व्रज में श्री कृष्ण को अनुपस्थिति देखकर अरिष्टासुर ने व्रज को तहस-नहस करने के उद्देश्य से व्रज में प्रवेश किया. उसने वृषभ का रूप धारण कर रखा था.
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उसका शरीर असामान्य रूप से विशाल था. खुरों के पटकने से धरती में कंपन हो रहा था. पूंछ खड़ी किए हुए अपने भयंकर सींगों से चहारदीवारी, खेतों की मेड़ आदि तोड़ता हुआ वह आगे बढ़ता ही जा रहा था.
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उस तीखे सींग वाले वृषभ को देख समस्त वृजवासी कृष्ण को पुकारते हुए वन की ओर भागे. पूरे वृन्दावन को भयभीत भागता देखकर श्री कृष्ण ने अरिष्टासुर को ललकारा.
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क्रोध से तिलमिलाता अरिष्टासुर खुरों से धरती को खोदता हुआ श्री कृष्ण पर झपटा. श्री हरि ने उसके दोनों सींग पकड़ ऐसा झटका दिया कि वह अठारह कदम पीछे जाकर चारों खाने चित्त हो गया.
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श्री कृष्ण दौड़े और उसे धर दबोचा. अरिष्टासुर को न तो उठने का अवसर मिला न ही संभलने और पलटवार का. भगवान ने उसके दोनों सींग उखाड़ लिए और उसे सीगों से ही उस पर प्रहार करने लगे. अपने तेज सींगों के प्रहार से अरिष्टासुर के प्राण निकल गए.
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अरिष्टासुर था तो राक्षस लेकिन उसने बैल का रूप धरा रखा था. श्री कृष्ण ने गोवंश का वध कर दिया, मूर्खता में गोपियां ऐसा सोचने लगीं. वध के बाद प्रभु ने राधा को स्पर्श कर लिया.
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राधा जी उनसे कहने लगी की आप कभी मुझे स्पर्श मत करना क्योंकि आपके सिर पर गोवंश हत्या का पाप है. आपके स्पर्श से मैं भी गौहत्या के पाप में भागीदार बन गई हूं. श्री कृष्ण को राधा जी के भोलेपन पर हंसी आ गई.
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उन्होंने कहा कि मैंने किसी बैल का नहीं, बल्कि असुर का वध किया है. राधा जी बोलीं- आप कुछ भी कहें, लेकिन उस असुर का वेष तो बैल का ही था. इसलिए आप गोहत्या के दोषी हुए. अजीब उलझन फंसी ये तो.
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यह सुनकर गोपियां बोली- वृत्रासुर भी तो राक्षस था लेकिन उसकी हत्या करने पर इन्द्र को ब्रह्महत्या का पाप लगा था तो फिर आपको गोहत्या का पाप क्यों नहीं लगेगा ?
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श्री कृष्ण मुस्कुराकर बोले- अच्छा तो बताओ कि मैं इस पाप से कैसे मुक्त हो सकता हूं. तब राधा जी ने अपनी सखियों के साथ श्री कृष्ण से कहा- हमने सुना है कि सभी तीर्थों में स्नान के बाद ही आप इस पाप से मुक्त हो सकते हैं.
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यह सुनकर श्री कृष्ण ने अपने पैर को अंगूठे से भूमि को दबाया तो पाताल से जल निकल आया. जल देखकर राधा और गोपियां बोली हम विश्वास कैसे करें कि यह तीर्थ की धाराओं का जल है.
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ऐसा सुनकर सभी तीर्थ धाराओं ने अपना परिचय देना शुरू किया. श्री कृष्ण ने राधा जी और गोपियों को उस कुंड में स्नान करने को कहा तो वे कहने लगीं कि हम इस गोहत्या लिप्त पापकुंड में क्यों स्नान करें. इसमें स्नान से हम भी पापी हो जाएंगे.
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तब राधिका जी ने अपनी सखियों से कहा कि सखियों हमें अपने लिए एक मनोहर कुंड तैयार करना चाहिए. उन्होंने कृष्ण कुंड की पश्चिम दिशा में वृषभासुर के खुर से बने एक गड्ढे को खोदना शुरु किया. 
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गीली मिट्टी को सभी सखियों और राधा जी ने अपने कंगन से खोदकर एक दिव्य सरोवर तैयार कर लिया.
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राधा जी और सखियों ने कुंड भर लिया लेकिन जब बारी तीर्थों के आवाहन की आई तो राधा जी को समझ नहीं आया वे क्या करें. उस समय श्री कृष्ण के कहने पर सभी तीर्थ वहां प्रकट हुए.
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इस प्रकार कहने लगे – मैं लवण समुद्र हूँ. मैं क्षीर सागर हूँ. मैं सुर्दीर्घिका हूँ .मैं शौण. मैं सिन्धु हूँ. मैं ताम्रपर्णी हूँ. मैं पुष्कर हूँ. मैं सरस्वती हूँ. मैं गोदावरी हूँ. मैं यमुना हूँ. मैं सरयू हूँ. मैं प्रयाग हूँ. मैं रेवा हूँ. हम सबों के इस जल समूह हो देखकर आप विश्वास कीजिये.
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राधा जी से आज्ञा लेकर तीर्थ उनके कुंड में विद्यमान हो गए. यह देखकर राधा जी कि आंखों से आंसू आ गए और वे प्रेम से श्री कृष्ण को निहारने लगीं.
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(((((((((( जय जय श्री राधे ))))))))))
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