गुरुवार, 8 जून 2017

= माया का अंग =(१२/५२-४)


#daduji
卐 सत्यराम सा 卐 
*श्री दादू अनुभव वाणी* 
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
*माया का अँग १२*
.
*आसक्तता=मोह* 
दादू मोह सँसार का, विहरे तन मन प्राण । 
दादू छूटे ज्ञान कर, को साधू सँत सुजाण ॥ ५२ ॥ 
५२ - ५३ में मोह का प्रभाव बता रहे हैं - इस मायिक सँसार का मोह प्राणियों के तन, मन और प्राणों को सँसार में भटकाता रहता है । कोई श्रेष्ठ ज्ञानी सन्त ही ब्रह्म - ज्ञान के द्वारा सँसार के आवागमन से मुक्त होकर ब्रह्म में लय होता है । 
मन हस्ती माया हस्तिनी, सघन वन सँसार । 
तामें निर्भय हो रह्या, दादू मुग्ध गंवार ॥ ५३ ॥ 
इस सँसार रूप सघन वन में अज्ञानी प्राणी का मन - हस्ति माया - हस्तिनी से मोहित होकर उस भय के स्थान में भी निर्भय हो रहा है । 
*काम* 
दादू काम कठिन घट चोर है, घर फोड़े दिन रात । 
सोवत साह न जागई, तत्व वस्तु ले जात ॥ ५४ ॥ 
५४ - ५६ में काम का उपज्व बता रहे हैं - अन्त:करण में काम रूप विकट चोर है, वह सात्विक वृत्ति रूप घर को रात - दिन तोड़ता ही रहता है । जीव रूप साह मोहनिद्रा में सो रहा है । सँत और शास्त्रों के जगाने पर भी नहीं जागता । इसीलिए काम - चोर स्थूल शरीर की सार वस्तु वीर्य और सूक्ष्म शरीर की सार - वस्तु ज्ञान चुरा ले जाता है ।
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें