शुक्रवार, 9 जून 2017

= गुरुसम्प्रदाय(ग्रन्थ १०/३३-४) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
https://www.facebook.com/DADUVANI
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*= गुरुसम्प्रदाय(ग्रन्थ १०) =*
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*तिन के गुरु कौ पार न लहिये ।*
*अब्ध्यानन्द महद्गुरु कहिये ।*
*पूरन ज्ञान भर्यौ जल जामैं ।*
*मुक्ताफल उपजै है तामैं ॥३३॥*
उनके गुरु का तो कोई पार ही नहीं पा सकता । उनको तो महागुरु कहना चाहिये । उनका नाम है अब्ध्यानन्दजी । इनका ह्रदय ज्ञानजल से लबालब भरा था । उस जल में मोक्षरूपी मुक्ताफल निपजते रहते थे ॥३३॥
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*तिन के गुरु कीयौ भ्रम नाशा ।*
*सहजानन्द द्वंद्व नहिं पासा ।*
*सहजै ब्रह्म मांहिं थिरि होई ।*
*कष्ट कलेश कियौ नहिं कोई ॥३४॥*
उनके गुरु थे सहजानन्दजी । उनहोंने संसार में आकर प्राणियों के भ्रम का नाश करने का बीड़ा उठाया, क्योंकि वे स्वयं निर्द्वन्द्व थे । सांसारिक जाल से मुक्त थे । सहज समाधि द्वारा ब्रह्म में लीन रहते थे । शरीर को कष्ट या क्लेश देने वाले कोई भी तप उनहोंने नहीं किया ॥३४॥
(क्रमशः)

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